पुदुचेरी. मुनि सौम्यसागर ने कहा कि जीवन में अनेक विपदाएं आती है जिसके निवारण के लिए हम लगातार कोशिश करते रहते है। आचार्य मातुंग की तरह भक्ति में लीन रहने हेतु सारे उपसर्ग अपने आप ही लुप्त हो जाते है।
अडिग भक्ति का जीता जागता उदाहरण है मांतुगाचरित्र।कोई भी परेशानी जीवन में आये तो मात्र 48 बार पहला काव्य का जाप कर लें,बस पल भर में सारी परेशानियां भाग खड़ी होती दिखाई पड़ती है।
अरिजीत सागर ने इस अवसर पर कहा कि जो भी आठ अंगों के साथ धर्म अध्ययन की शुरुआत करते हैं उन्हें शब्दाचार, अर्थाचार, उव्याचार, बहुमानाचार, विनायाचार और कालाचार, उपधानाचार, निन्हवाहचार का ध्यान रखना चाहिए। हमे दिन में तीन बार सामायिक करना चाहिए। इन आठ अंगों के साथ शास्त्र का अध्ययन करने से ही तीर्थंकर पद्धति का बंध होता है।