चेन्नई,
साहुकारपेट स्थित श्री जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि ने कहा बोलने से भी व्यक्ति की ऊर्जा खर्च होती है। जैसे व्यक्ति काम करके थक जाता है वैसे ही बोलने से भी उसकी ऊर्जा घट जाती है। मनुष्य बोलना तो तीन साल से ही सीखता है लेकिन क्या बोलना है जीवन भर नहीं सीख पाता। जैसे बोलना जरूरी होता है वैसे ही मौन रहना भी जरूरी है। यदि बोलते ही जाएगा तो ऊर्जा तो खर्च होगी ही। यदि यही रवैया रहा तो धीरे धीरे ऊर्जा का यह खजाना भी खत्म हो जाएगा। आदमी को क्या एवं कितना बोलना है की भी जानकारी रखनी चाहिए। भगवान कहते हैं मौन रखने वाला मुनि होता है और यदि वह धर्म के बारे में बोलता है तो भी वह मौन ही माना जाता है। अधर्म के बारे में बोलने वाला मुनि नहीं हो सकता। मुनि ने कहा व्यक्ति को बोलने से पहले सोचना चाहिए। जरूरी होने पर ही बोलना चाहिए अन्यथा शांत रहना चाहिए। बिना प्रमाण के कोई भी बात किसी के सामने नहीं बोलनी चाहिए। इससे िि सिर्फ उसकी ऊर्जा जाएगी। आपके बोलने से यदि दूसरों को दुख हो तो वैसा वाक्य कभी नहीं बोलना चाहिए।