तपस्यार्थियों का सम्मान
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर, साध्वी डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में तपस्वियों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। इस मौके पर साध्वी उदितप्रभा ने कहा कि संसार में हमें कुलीन और सभ्य लोगों के साथ रहना, पंडित-विद्वान की मित्रता, स्वजाति के लोगों के साथ मेलजोल बढ़ाना चाहिए।
स्वच्छ कपड़ों में लगे दाग के समान बुरे व्यक्ति की संगत है, उनका संग कभी नहीं करना चाहिए। इससे अच्छा व्यक्ति भी लोगों की नजर में बुरा बन जाता है। यह शराब की दुकान पर बैठकर दूध पीने वाला भी शराबी कहलाने जैसा है। अच्छे व्यक्ति की संगत इत्र की दुकान जैसी है, जहां पर जानेवाला इत्र न खरीदे तो भी उसकी खुशबू से महकता है।
महापुरुषों की संगत, उनके बोलने और तौर-तरीकों से हम बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त लेते हैं। पैरों की धूल भी हवा के संसर्ग से आसमान में पहुंच जाती है, इसी प्रकार संत-सत्संग से जीवन परिवर्तन होकर उत्कर्ष को प्राप्त होता है। अनन्त पुण्य किए तो संत दर्शन मिला, संत दर्शन हुए हैं तो भविष्य भी सुधर जाएगा।
संत-वाणी को हृदय में धारण कर लें तो कल्याण हो जाए। जल की बंूद स्वाति नक्षत्र में सीप के मुख में गिरने से मोती, पुष्प पर गिरने से सौरभ और गरम तवे पर गिरे तो नष्ट होती है उसी प्रकार अच्छे लोगों के संग से जीवन अच्छा और बुरे से बुरा बन जाता है।
साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने कहा संसार में चार प्रकार के पुरुषार्थ बताए गए हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। जीवन की गाड़ी में पहला और अंतिम पुरुषार्थ धर्म तथा मध्य के दो सांसारिक जीवन में जरूरी है। आध्यात्मिक जीवन में धर्म और मोक्ष का महत्व है जबकि अर्थ और काम तो सांसारिक जीवन के लिए जरूरी है।
प्रभु ने आगार और अणगार या श्रावक और साधु दो धर्म बताए हैं। इनमें धर्म व मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करने की बात की गई है। प्रभु ने कहा है अर्थ, और काम की मर्यादा होनी चाहिए तो ये भी धर्म की श्रेणी में आ जाएंगे। धर्मसभा में तपस्यार्थियों का चातुर्मास समिति के पदाधिकारियों ने सम्मान किया। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।