त्रिदिवसीय स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविर का समापन आज
चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा के सानिध्य में जारी त्रिदिवसीय स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविर के दूसरे दिन साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने कहा- आगम में श्रद्धा को परम दुर्लभ बताया है। चार गति में मनुष्यगति और दस दुर्लभ अंगों में से नौवां दुर्लभ अंग श्रद्धा को बताया है।
श्रद्धा भौतिक या आध्यात्मिक हो सकती है। संसार में रहते हुए श्रद्धा और विश्वास के बिना गाड़ी नहीं चलती। प्रेम से बड़ा विश्वास है। प्रभु कहते हैं सांसारिक वस्तुओं और रिश्तों में विश्वास है पर आध्यात्मिक सफलता पर भी विश्वास रखें। साधना का पहला चरण है श्रद्धा। बिना श्रद्धा साधना सफल नहीं होती। 14 गुणस्थान में सबसे मुख्य सम्यकदृष्टि है। श्रद्धा के अनुसार मानव के तीन प्रकार बताए हैं- श्रद्धावान, अश्रद्धावान और अंधश्रद्धावान। श्रद्धावान सदैव आगे बढ़ता है, अश्रद्धावान रुक जाता है और अंधश्रद्धावान गिर जाएगा।
देव, गुरु, धर्म का उपहास करने वाला डूब जाता है। समकित की दृष्टि निर्मल और सोच सकारात्मक होती है, जो जैसा है वैसा ही उसे वह मानता है। कर्मोदय के समय में जो धैर्य, शांति से ज्ञातादृष्टा भाव से कर्म क्षय करता है वह सबसे उत्कृष्ट समकित है। जिस दिन श्रद्धा और समकित हो तभी साधना कर सकता है।
साध्वी उन्नतिप्रभा ने कहा आज का मनुष्य सुख प्राप्ति के लिए मिथ्यात्वी देवों से भिक्षा मांगता है, उन्हें मनाने का प्रयास करता है। शाश्वत सुख प्राप्ति केवल अरिहंत प्रभु ही दे सकते हैं। इस मनुष्य जन्म की कीमत पहचानें तो जीवन सफल हो जाए। वे ही इस जमाने को दिशा दे पाए जो जागे, उठे और आगे बढ़ गए। जो सोते रहते हैं वे अनमोल समय खो रहे हैं।
भौतिक पदार्थ प्राप्त करने में इस जीवन को न गंवाएं। आज मनुष्य पैसा और सुख पाने का चिंतन और भागदौड़ करता है। वह जीवन के प्रति निर्मम हो गया है और जीवन उस पर बोझ। प्रगति के नाम पर जीवन को दुर्गति में ले जा रहा है। आत्मा पर लगे कर्म अंधकार को हटाकर उसे जगाने का कार्य इस भव में ही हो सकता है।
साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ के सांसारिक भांजे राजकुमार जैन, साध्वी उम्मेदकंवरजी के परिजन ज्ञानचंद मुणोत, साध्वी झमकुकंवर के परिजन ताराचंद लोढ़ा, रमेश लोढ़ा सहित अनेक स्थानों से श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे। २१ सितम्बर को त्रिदिवसीय स्वाध्याय प्रशिक्षण शिविर का समापन होगा।