बेंगलुरु। अक्कीपेट में जैन संघ में विराजमान आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने गुरुवार को अपने व्याख्यान में कहा कि यह संसार क्षणभंगुर, नाशवान है। जो कल था, वह आज नहीं है और जो आज है, वह कल नहीं होगा। संसार प्रति क्षण नाशवान और परिवर्तनशील है।
उन्होंने कहा कि फिर हम क्यों बाह्य पदार्थों में भटक रहे है ? क्यों नश्वरता के पीछे जा रहे है ? हम आत्म-स्वरूप को समझकर शाश्वत सुख की ओर क्यों न बढें ?
जहां जीना थोडा, जरूरतों का नहीं, सुख का नामोनिशान नहीं; ऐसा है संसार और जहां जीना सदा, जरूरतों का नाम नहीं, सुख नहीं; वह है मोक्ष ! उन्होंने कहा कि हमारी सोच संसार से हटकर मोक्ष की ओर नहीं होती, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम अनन्त काल से संसार की क्षणभंगुरता को समझे बिना चले आ रहे है,यही हमारे जन्म-मरण का कारण है तथा यही दुःख का कारण है ।
हम 24 घण्टे व्यस्त रहते है। विचार नहीं करते कि हम आत्मा के लिए क्या कर रहे है । संसार के नाशवान पदार्थ ही सब झगडों की जड़ है। जब तक यह चिन्तन नहीं बनेगा, संसार से आसक्ति खत्म नहीं होगी, हम स्व-बोध को, आत्म-बोध को प्राप्त नहीं कर सकेंगे और उसके बिना आत्मिक आनंद, परमसुख की उपलब्धि असम्भव है”।
आचार्यश्रीजी ने कहा कि माता-पिता का पहला कर्त्तव्य है बच्चों को जन्म से ही धार्मिक संस्कार देना, लेकिन आज माता-पिता बच्चों को संस्कारों के पहले भौतिक सुख-सुविधाएं उपलब्ध करा रहे हैं।
यही वजह है कि छोटे-छोटे बच्चे टीवी, इंटरनेट पर जो दिख रहा है उसे सच मानकर सच्चाई से दूर होते जा रहे है। बच्चों को सुख-सुविधाएं देनी चाहिए लेकिन उसके पहले आवश्यक है कि उन्हें संस्कार दिए जाए।