चेन्नई.माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में दो आध्यात्मिक परम्पराओं के संवाहकों जैन तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण और दिगंबर परम्परा के आचार्य श्री पुष्पदंतजी सागर का आध्यात्मिक मिलन हुआ| दोनों आचार्यों ने अभिवादन कर खमत खामणा किया|
सरलता ही बनती निर्वाण का कारण
ससंघ पधारे आचार्य श्री पुष्पदंत सागर ने कहा कि मैं यहां आकर गद् गद् हूँ, आनन्दित हूँ| उन्होंने सरलता के साथ, विनम्र बन कर कहा कि आपको एक बात की हंसी आयेगी, लेकिन कहूंगा| जब मैं आया, महाश्रमणजी आये, हम लोग हाथ पकड़ कर साथ साथ चले, बहुत देर तक खड़े रहे| आचार्य श्री पुष्पदंत ने आगे कहा कि मैने कभी आँख उठाकर महाश्रमणजी को देखा नही था, पास में जरूर बैठा था| तो मैने आपको पूछा – महाश्रमणजी कब आयेंगे, तो आप बोले मैं ही हूँ| इस सरलता पर आचार्य पुष्पदंतजी सागर ने कहा कि महाश्रमणजी बहुत सरल है, इजी हैं और यह सरलता ही हमारे निर्वाण का कारण बनती हैं|
आचार्य श्री पुष्पदंतजी सागर ने आगे कहा कि जहां तक हम अपनी जिंदगी का अवलोकन करते हैं, तो तीर्थंकर को छोड़ कर ऐसा एक भी प्राणी नहीं, जो पतित न हुआ हो, गिरा न हो, ठोकर न लगी हो| हो सकता हैं काया से नहीं गिरा हो, पर विचारों से गिरा हो| वचन से न गिरा हो, तो मानसिकता से गिरा हो, व्यक्ति के गिरने का कोई समय निश्चित नहीं होता|
घर में आने के लिए निमंत्रण की नहीं जरूरत
आचार्य श्री महाश्रमण ने इस अवसर पर कहा कि आज दिगंबर परम्परा के आचार्य श्री पुष्पदंतजी सागर का सवेरे सवेरे पदार्पण हो गया| पहले भी चेन्नई में साथ में बैठना हुआ, मिलना हुआ, बातचीत का प्रसंग हुआ और आज फिर आपका समागन हुआ| बहुत अच्छा है, आप चलाकर के यहा पधारें| चलाकर के आना बहुत बड़ी बात है, एक तो व्यक्ति निमंत्रण की प्रतीक्षा करे, एक अपने आप पधार जाएं, मानो अपने घर में पधार गये हैं| घर में आने के लिए निमंत्रण की क्या जरूरत रहती हैं, घर में आदमी कभी भी आ सकता हैं|
काल के लिए समय नहीं अनवसर
आचार्य श्री महाश्रमण ने आगे कहा कि पिछले दिनों में मुनि तरूण सागरजी का देहावसान हो गया था| आचार्य श्री ने कहा कि हमारा तो अनेक बार उनके साथ कार्यक्रम हुए और दिल्ली में अनेक बार कार्यक्रम साथ में हुए थे| सन् 2014 में तो बड़ा कार्यक्रम हुआ था| वे अच्छे व्यक्ता मुनि थे| उनका अपना प्रभाव था व्यक्तव्य पर| वे अब काल धर्म को प्राप्त हो गये| आचार्य श्री महाश्रमण ने आचार्य श्री पुष्पदंतजी सागर को संबोधित करते हुए कहा कि आपका खुब चित्त समाधि का भाव रहे| हो सकता हैं कि कोई अपना शिष्य छोटी उम्र में चला जाएं, गुरू के रहते शिष्य चला जाएं, उल्टी सी कुछ बात होती हैं| पर हम तो जैन शासन में रहने वाले हैं, शास्त्रों का स्वाध्याय करने वाले हैं| यह काल की स्थितियां हैं| काल के लिए कोई समय भी अनवसर नहीं, मृत्यु तो कभी भी आ सकती हैं, बस धर्म का टिफिन हमेशा पास में रहे, साथ में रहे, वो हमारे आगे साथ में रहे| यह तो दुनिया का नियम हैं कि एक दिन शरीर छुटता भी हैं| तो हमारी अच्छी साधना चलती रहे| जैन शासन की, मानवता की बहुत अच्छी सेवा आपके द्वारा होती रहे|
जिन्दगी में हो सकती हैं गलती
आचार्य श्री ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिन्दगी में गलतियां बड़ी भी हो सकती हैं, छोटी भी हो सकती हैं| कोई गलती हो ही नहीं, ऐसा तो कोई कोई आदमी भले मिल जाएं| बाकी छोटी – मोटी गलतियां तो किसी से भी हो सकती हैं|
असाध्य बिमारी की करे चिकित्सा
आचार्य श्री महाश्रमण ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि अगर हमारे द्वारा गलतियां हो गई है, संयम में दोष लग गये हैं, व्रतों में कोई छिद्र हो गए हैं, उनको छिपा लिया| किसी के असाध्य बिमारी हो गई है, उसको छिपाकर रखेंगे, तो क्या फायदा? डॉ को बताएंगे, तो चिकित्सा हो जाएं, तो कुछ ठीक हो सकता हैं| तो यह छिद्र रूपी, गांठ रूपी स्थिति संयम में हो जाती हैं| उसकी चिकित्सा करा लो| चिकित्सा नहीं कराएंगे, विराधक बन जायेंगे, तो आगे मृत्यु के बाद कठिनाई भोगनी पड़ सकती हैं| तो हमारे संयम की, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की अच्छी आराधना हो जाएं| आराधक पद प्राप्त करले, तो आगे भी अच्छी स्थति रह सकती हैं| वरना देव गति में जाकर भी कुछ निम्न श्रेणी में रहना पड़ सकता हैं| विराधित संयम होता हैं, तो आगे कठिनाई पैदा हो सकती हैं|
प्रायश्चित हैं शल्यक्रिया
आचार्य श्री महाश्रमण ने आगे कहा कि प्रायश्चित एक औषध है, शल्यक्रिया है| हमें अपने संयम रूपी शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इस चिकित्सा को भी काम में लेना चाहिये|
सम्यग्दृष्टि के लिए बने अन्तर्मुखी : आचार्य श्री पुष्पदंतजी
इस अवसर पर आचार्य श्री पुष्पदंत ने कहा कि व्यक्ति कैसा बनना चाहता है? वह जैसा बनना चाहता है, उसके लिए उसको वैसा रहना चाहिए, वैसा सोचना चाहिए, वैसा आचरण करना चाहिए| सम्यक्त्वी बनने के लिए व्यक्ति को अन्तर्मुखी होने का प्रयास करना चाहिए| बाहर का द्वार खुला हुआ हैं| सभी इन्द्रियों के द्वार भी बाहर की ओर खुलते हैं और मन भी बाहर की ओर भागता हैं|
आचार्य श्री पुष्पदंत ने आगे कहा कि व्यक्ति खुश रहना चाहता है, खुश होना चाहता हैं| वह चाहता है कि मेरा परिवार मेरे अनुकूल हो, पत्नी मेरी बात मानने वाली हो| गाड़ी, फर्नीचर, मोबाइल सब अच्छा हो| उसके लिए *व्यक्ति अपने आप को गिरवी रख लेता है, वस्तुओं, इच्छाओं का गुलाम बन जाता हैं और उसी में सुख, शांति का अनुभव करता है|*
बहिर्मुखी से बने अन्तर्मुखी
आचार्य श्री ने कहा कि यह बहिरात्मा हैं, बाहर भटकती आत्मा हैं| हमें सच्चे सुख के लिए बाहर से भीतर की ओर आना पड़ेगा, स्वयं अपने शरीर अनुकूल सुखानुभूति के साधनों को छोड़, आत्मा के सुख की ओर ध्यान देना होगा| जब व्यक्ति बहिर्मुखी से अन्तर्मुखी की ओर यात्रायित होगा, उसी क्षण सम्यक्त्व का बीजारोपण होना शुरू हो जायेगा|
चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के उपाध्यक्ष श्री प्रकाशचन्द मुथा ने दिगंबर आचार्य श्री पुष्पदंतजी सागर के ससंघ पधारने पर स्वागत किया| प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़, महामंत्री श्री रमेश बोहरा ने आचार्य प्रवर को साहित्य निवेदित किया|
सौहार्द पूर्ण माहौल में हुआ सकारात्मक विचारों का आदान प्रदान
मध्याम में आचार्य श्री महाश्रमण एवं आचार्य श्री पुष्पदंत सागर के मध्य सौहार्द पूर्ण माहौल में काफी लम्बी आध्यात्मिक घर्म चर्चा चली| सम्यक् विचारों का आदान प्रदान हुआ, तो कुछ शंका समाधान भी चले| भगवान महावीर की श्वेतांबर और दिगंबर परम्परा के आचार्यों के मध्य की सकारात्मक वार्ता को देख श्रद्धालु भी अपने आप को गौरवान्वित महसूस करने लगे| इस बातचीत को जैन एकता की दृष्टि में एक बड़ा कदम महसूस किया जा रहा हैं|