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प्राणी को स्वयं भोगने होते हैं अपने किए हुए कर्म: आचार्य महाश्रमण

प्राणी को स्वयं भोगने होते हैं अपने किए हुए कर्म: आचार्य महाश्रमण
कुम्बलगोडु, बेंगलुरु (कर्नाटक): प्राणी को अपने किए हुए कर्म भोगने होते हैं। सबका अपना-अपना पुण्य और पाप होता है। इन्हीं पाप और पुण्यों के आधार पर मानव अपने-अपने कर्मों का फल भोगता है। स्वयं द्वारा किया हुए कर्म स्वयं को ही भोगना होता है। आदमी अपने पाप कर्मों के कारण जब कोई कष्ट भोगता है तो उस समय उसके परिजन वहां उपस्थित होते हैं और उसके सगे यह चाहते भी हों कि उसे कष्ट को बंटा सकूं तो कोई उसके कष्ट को कम नहीं कर सकता, बांट नहीं सकता।
उसके मित्र, पुत्र, भाई आदि कोई भी उसके प्रति अपनी सहानुभूति अपनी संवेदना दे सके, दवा-इलाज करा सकता है, किन्तु उसके कष्टों को नहीं बांट सकता। क्योंकि कर्म कर्ता का ही अनुगमन करता है। इस प्रकार आदमी को अपना पाप और पुण्य स्वयं ही भोगना होता है।
पुण्य और पाप को भोगने में द्रव्य, क्षेत्र, काल, व्यवस्था और बुद्धि का योग हो जाता है। ये सभी चीजें कर्म भोगने में हेतु बनते हैं। आदमी के जब बुरे कर्मों का उदय होता है तो सबसे पहले उसकी बुद्धि भ्रष्ट होती है और बुद्धि भ्रष्ट होते ही आदमी गलत कार्य करता है और दुःख को प्राप्त होता है। उसी प्रकार जब आदमी के पुण्य का उदय होता है, उसके अनुसार परिस्थितियां भी अनुकूल हो जाती हैं और वह सुख को प्राप्त कर सकता है।
परिस्थितियां पुण्य और पाप के भोग के साथ-साथ अनुकूल और प्रतिकूल होती रहती हैं। पुण्य के उदय के समय स्थितियां अनुकूल हो जाती हैं तो वही पाप के उदय के समय परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं। इसलिए आदमी को अपने अच्छा कर्म करने का प्रयास करना चाहिए और बुरे कार्यों से बचने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन प्रेरणा रविवार को ‘महाश्रमण समवसरण’ में उमड़ी जनमेदिनी को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता परम पावन, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘सम्बोधि’ ग्रन्थ के माध्यम से प्रदान की।
आचार्यश्री ने ‘महात्मा महाप्रज्ञ’ के माध्यम से आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के बालमुनि काल के घटना प्रसंगों का सरसशैली में वर्णन किया। इसके उपरान्त आचार्यश्री जैन धर्म में पर्वाधिराज कहे जाने वाला पर्युषण महापर्व जो 27 अगस्त से आरम्भ हो रहा है। इसके संदर्भ में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान कर इस महापर्व के दिनों के व्रत आदि उपक्रमों के संदर्भ में पाथेय प्रदान किया।
आचार्यश्री ने अपने प्रवचन के उपरान्त चेन्नई के मुमुक्षु कुणाल श्यामसुखा तथा मुमुक्षु खुश बाबेल को अपने सन्निकट बुलाया और उनके दीक्षा के संदर्भ में उनके मनोभाव को जानने के लिए कुछ प्रश्न किए तो मुमुक्षुओं ने अपनी भावना व्यक्त की।
आचार्यश्री ने मुमुक्षुओं के परिजनों सहित चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों आदि से भी वार्तालाप करने के उपरान्त दोनों मुमुक्षुओं को इस चतुर्मास काल के दौरान 20 अक्टूबर 2019 को होने वाले दीक्षा समारोह में मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा की। आचार्यश्री के घोषणा के साथ ही पूरा पंडाल जयकारों से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री ने दोनों मुमुक्षुओं को साधु प्रतिक्रमण सीखने की अनुमति प्रदान की।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ की असाधारण साध्वीप्रमुखाजी ने श्रद्धालुओं को उद्बोधित करते हुए आचार्यश्री की मंगलवाणी का श्रवण कर जीवन का कल्याण करने को उत्प्रेरित किया। आज भी अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्याओं का श्रीमुख से प्रत्याख्यान कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। इसमें श्रीमती कुसुमलता हिरण ने 31, श्रीमती उषा तातेड़ ने 30 व श्री अर्पित मोदी ने 33 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
                  🙏🏻संप्रसारक🙏🏻
            *सूचना एवं प्रसारण विभाग*
         *जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा*

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