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प्रभु से प्रीति हुए बिना आत्मानुभूति औ नहीं होती: विजयजी मुनि

प्रभु से प्रीति हुए बिना आत्मानुभूति औ नहीं होती: विजयजी मुनि

विशाखापट्टनम मूर्तिपूजक जैन संघ के आराधना भवन में आचार्य श्री जयन्तसेनसूरिजी के सुशिष्य मुनि श्री संयमरत्न विजयजी,मुनि श्री भुवनरत्न विजयजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि पाप और पुण्य जीवन में दो तत्व है।जीवन की गाड़ी इन्हीं दोनों से चलती है।जिस गाड़ी में एक पहिया ट्रेक्टर का हो और दूसरा पहिया साइकिल का तो ऐसी गाड़ी कभी भी आगे नहीं बढ़ सकती।

ऐसे ही हमारे जीवन की गाड़ी में एक पहिया ट्रेक्टर का है,जिसका नाम है पाप और दूसरा पहिया है साइकिल का जिसका नाम है पुण्य।यदि हमारे जीवन में पाप का पहिया भारी और पुण्य का पहिया कमजोर हो तो ऐसी दशा में हमारी दुर्दशा होनी ही है।हमें पुण्य का पहिया मजबूत बनाना है ताकि जीवन की गाड़ी को शक्ति मिल सके।हो सके तो प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा पुण्य जरूर बढ़ाए,पुण्य बढ़ेगा तो ही जीवन आगे बढ़ेगा।

पाप का बीज बोकर कोई भी पुण्य की फसल नहीं काट सकता।पाप से भीति(भयभीत) हुए बिना प्रभु से प्रीति नहीं हो सकती और प्रभु से प्रीति हुए बिना स्वयं की प्रगति व आत्मानुभूति नहीं हो सकती।

पाप का पहिया पहले से ही भारी है,हम उसे और भारी करने में लगे हुए हैं और पहले जो थोड़ा बहुत पुण्य होता था,वह भी नहीं हो रहा है।ऐसे में अच्छी- खासी जिंदगी की गाड़ी खटारा बनकर रह जाती है,जिसमें हॉर्न के अलावा सब बजता है और पहिये के अलावा सब हिलता है।

इंसान केवल पाप को बढ़ा ही नहीं रहा है,अपितु पाप को ही पुण्य मान बैठा है और उस पाप को बिना किसी भय,शर्म और झिझक के खुशी-खुशी करने लगता है।अट्ठारह पुराणों का सार कहता है कि परोपकार से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और दूसरों को दुःख पहुंचाने के सिवा कोई पाप नहीं।

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