चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने कहा जो धर्म का दान देते हैं वे दानेश्वर हैं। अनादिकाल से मनुष्य में स्वार्थ प्रवृत्ति भरी पड़ी है। संसार में परिग्रह, पुत्र, पुत्री, परिवार,प्रतिष्ठा सब कदन्न है।
जीवन में कदन्न की भूख कभी शान्त ही नहीं होती और इसको पाने के लिए हम संसार में भटक रहे हैं, भीख मांग रहे हैं। इसके लिए खाने व सोने का समय नहीं है। यह सब कुछ कदन्न है। जीवन में शोक, दुख, चिंता कदन्न के ही कारण है। जैसे कदन्न बढ़ेगा, जीवन में व्याकुलता, अशांति बढेगी।
कदन्न के कारण दुनिया इस तरह दीवानी है कोई परमार्थ देना चाहे तो भी नहीं लेते। जगत में भौतिक समृद्धि से तृप्ति कभी नहीं मिलने वाली है, कभी संतोष होने वाला नहीं है। उन्होंने कहा अपने अन्तर्चक्षु खोलो। कदन्न के कारण कई रोग हो जाते हैं। इसी तरह कदन्न की चाहत में जीवन में परेशानियां बढ़ती है व जीवन दु:खों से भर जाता है और कर्म बंध होते हैं।
जब कर्मों की स्थिति हल्की होती है तब ही यह संभव है। नवकार मंत्र वही बोल सकता है जिसकी कर्म स्थिति अंत: कोटाकोटि की हो। जिन शासन में आने के बाद यदि कोई नवकार मंत्र नहीं बोल सकता है इसका मतलब दुष्कर्म भारी है। पुण्य प्रबल होने से ही हमें नवकार मंत्र मिला है।