चेन्नई. युग प्रधान आचार्य श्री सुधर्मा स्वामी जी म. प्रभु महावीर के पंचम गणधर थे। उनके शिष्य आर्य जम्बू स्वामी जी म. ने जब अपने गुरुदेव से ‘प्रभु महावीर के बारे में जानना चाहता तो आर्य सुधर्मा स्वामी जी म. ने ‘वीर स्तुति’ की रचना की, जिसके 29 श्लोक हैं। इसे शास्त्र की भाषा में ‘पुच्छिसुणं’ भी कहा जाता है। इस स्तोत्र की हर गाथा, हर पंक्ति, हर शब्द अपने आप में एक मंत्र के समान है।
यह विचार-ओजस्वी वक्ता डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में प्रवचन सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा किसी व्यक्ति का परिचय उसके आचार-विचार और व्यवहार से होता है। प्रभु महावीर के माता-पिता कौन थे उनका जन्म कहां हुआ? भाई-बहनों का नाम – संख्या क्या थी? उनके शरीर का रंग-रूप कैसा था, यह केवल शब्दात्मक परिचय है परंतु आचार्य सुधर्मा जी ने वीर स्तुति की 29 गाथाओं में भगवान महावीर का गुणात्मक परिचय सृजित किया है।
प्रभु महावीर की साधना कैसी थी, उनकी क्षमा भावना कैसी थी, उनका ज्ञान, दर्शन, चारित्र कैसा था? ये सब आन्तरिक परिचय, जिसे हम प्रभु महावीर की ‘आत्मा’ भी कह सकते हैं वह सब वीरत्थुई में सहज ही प्राप्त हो जाता है। तीनों लोकों में सूर्य, चन्द्र, देवेन्द्र, शक्रेन्द्र, सुमेरु पर्वत, सुदर्शन वृक्ष, गंगा नदी आदि जितनी भी सर्वश्रेष्ठ उपमाएं हैं, उन सबके द्वारा प्रभु महावीर को आचार्य सुधर्मा स्वामी जी ने बड़े ही तर्क कौशल एवं श्रद्धा की पराकाष्ठा से उपमित किया है।
गुरुदेव ने कहा पुच्छि सुणं स्तोत्र की साधना के द्वारा दु:खों का निवारण होता है, सुखों का जीवन में सर्जन होता है एवं प्रत्येक व्यक्ति को शांति- समृद्धि एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसी के साथ यदि कोई साधक निष्काम भक्ति, निस्वार्थ श्रद्धा से इसका पारायण करता है तो उत्कृष्ट श्रद्धा रस होने पर स्वयं ही वीतराग दशा एवं तीर्थंकर पद को भी प्राप्त कर सकता है।
श्रीसंघ के मंत्री शांति लाल लुंकड़ ने बताया- महिला मंडल की ओर से महिला स्थानक में प्रतिदिन दोपहर 2.31 से श्रीपुच्छीसुणं जी स्तोत्र की सामूहिक आराधना की जाएगी जो दीपावली पर्व तक गतिमान रहेगी। उल्लेखनीय है कि- इस अनुष्ठान में भाग लेने वाले प्रत्येक श्रद्धालु द्वारा 108 बार इस महा प्रभावशाली- महा मंगलकारी स्तोत्र का पारायण किया जाएगा।