चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा जो मनुष्य प्रभु के प्रति दर्शन वंदन के भाव रखता है उसका असुख का बंधन सुख में बदल जाता है। प्रभु के प्रति श्रद्धा दिखाने से पहले उसके तरीके को जानने की जरूरत है। मन में गलत भाव रख कर की गई श्रद्धा भी व्यर्थ हो जाती है।
मनुष्य के अंदर धर्म करने की प्यास होनी चाहिए। जब प्यास लगेगी तभी धर्म सही मायने में आएगा। परमात्मा के दिखाए मार्ग पर चल कर जीवन को बदला जा सकता है। साध्वी सुविधि ने कहा कि जिस प्रकार से बचपन में बच्चे स्कूल जाते है उसी प्रकार से चातुर्मास के चार माह सभी को बाहर की दुनिया भूल कर ज्ञान के स्कूल में जाकर धर्म करने की जरूरत है।
यहां धर्म करने का स्कूल चलेगा। इस चार महीने प्रत्येक मनुष्य को अपनी चेतना और आत्मा से खुद को बांधने का संकल्प लेना चाहिए। अब तक के किए गए सभी पाप के कार्यो को छोड़ कर सही मार्ग पर आगे बढऩे का समय आ गया है। मनुष्य की चेतना सोने की तिजोरी है और तिजोरी में कचरा रखना सही नहीं है।
उस तिजोरी में अब धर्म, ध्यान, तप और त्याग कर हीरा भरना होगा। अपनी अज्ञानता की वजह से मानव जीवन का महत्व नहीं जान पा रहा है और सोने जैसी तिजोरी में कचरा भर लेता है। लेकिन अब उसे साफ करने की जरूरत है। जीवन में आगे निकल कर मोक्ष की प्राप्ति के लिए ऐसा करना होगा।
उन्होंने कहा कि धर्म को सच्चे मन से मानने पर ही सही मार्ग की ओर जाने का मौका मिलता है। प्रवचन सुनने के बाद लोग कुछ देर तो बदलाव की सोचते हैं फिर सांसारिक मोह माया में उलझ जाते है। लेकिन ऐसा करने के बजाय संकल्प लेकर धर्म के कार्यो में आगे बढऩा चाहिए। धर्म सभा में अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी समेत अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।