चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वडपलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा कि पाप का अंत निश्चय है। जब पाप का उदय होता है तो रोने से भी माफी नहीं मिलती है। इसलिए जब तक समय अच्छे हो पाप के मार्गों से जितना हो सके बच जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में लोग पशु हिंसा कर उसका आहार करते हैं और खुद को बलवान समझते हैं। लेकिन याद रहे कि मूक पशुओं की हिंसा करने वाले बलवान नहीं पापी होते हैं। पुण्य के उदय की वजह से पाप करने की सजा तुरंत नहीं मिलती है तो इसका मतलब ये नहीं कि पाप खत्म हो गया। बल्कि घड़ा भर रहा है और पूरा होते ही फट जाएगा। जिस दिन फटेगा पापी मनुष्य का जीवन तबाह कर देगा।
उन्होंने कहा कि मनुष्य को हिंसा से जितना हो सके बच जाना चाहिए। जिसके मन में जैसा देंगे वैसा ही मिलेगा वाली धारणा आ जाती है वे पाप के मार्गों से बच जाते हैं। उन्होंने कहा कि पाप और पुण्य के उदय को मनुष्य संसार में ही रह कर झेलेगा। पुण्य करने वाला हंसते हुए विदाई लेकर स्वर्ग में जाएंगे और पाप वाले तड़प के नर्क में जाएंगे। उन्होंने कहा कि पाप की कमाई ज्यादा नहीं चलती है।
अगर कोई सोचे कि पाप के मार्गों पर चल कर हर सुख पा ले तो यह संभव नहीं है। पुण्य करना आसान नहीं होता है लेकिन इसके बिना मानव भव का कल्याण नहीं होता हैं। उन्होंने कहा कि पाप की कमाई में मूल के साथ ब्याज को भी चुकाना पड़ता हैं।
उिन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन की अशांति और दुख का मुख्य कारण पाप है। ये जानते हुए भी जो इन मार्गों से दूर नहीं होंगे वे बहुत पछताएंगे। पाप का धन कमा कर दुखी जीवन पाने से बेहतर है पुण्य कर सुकून का जीवन जीएं। जो इन मार्गों का अनुसरण करेंगे उनका जीवन सुखद बन जाएगा।