Share This Post

ज्ञान वाणी

पाप के अठारह प्रकार हैं

क्रमांक – 36

. *तत्त्व – दर्शन*

 *🔹 तत्त्व वर्गीकरण या तत्त्व के प्रकार*

*👉जैन दर्शन में नवतत्त्व माने गये हैं – जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष।*

*🔅 पाप तत्त्व*

*पाप के अठारह प्रकार हैं-*

*17. माया-मृषा : मायासहित झूठ बोलना माया-मृषा पाप है। इस पापमूलक प्रवृत्ति में माया और मृषा दोनों का संयोग है। क्रोध-मृषा, मान-मृषा और लोभ मृषा पाप को इसी के अन्तर्गत माना जा सकता है।*

*18. मिथ्या दर्शन शल्य : विपरीत श्रद्धा रूपी शल्य मिथ्या दर्शन शल्य पाप है। सर्वज्ञभाषित तत्त्व में विपरीत श्रद्धा होना या श्रद्धा न होना मिथ्या दर्शन है। जैसे शरीर में चुभा हुआ शल्य (कांटा) या अन्तर्द्रण सदा कष्ट देता है, उसी प्रकार मिथ्या दर्शन भी आत्मा को दुःखी बनाये रखता है।*

*✒️ नोट – पापकारी प्रवृत्ति अशुभ योग आश्रव है। जैसे प्राण वध करना योग आश्रव कहलाता है और प्राण वध करने से जो कर्म बंधता है, वह प्राणातिपात पाप कहलाता है। कर्म के उदय से प्राणातिपात होता है और प्राणातिपात करने से कर्म का बंध होता है।*

*ये अठारह भेद वास्तव में पाप तत्त्व के नहीं है, किन्तु पाप-बंध के कारणों के हैं। इनकी प्रवृत्ति को पाप स्थान के माध्यम से जाना जा सकता है। जिस कर्म के उदय से जीव हिंसा करता है, असत्य भाषण करता है तथा उसी प्रकार अन्य पाप करता है, उस कर्म को प्राणातिपात पाप-स्थान, मृषावाद पाप-स्थान आदि कहा जाता है।*

*क्रमशः ………..*

*✒️ लिखने में कोई गलती हुई हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।*

विकास जैन।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar