बाड़मेर। बाड़मेर नगर के स्थानीय जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में श्री जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ संघ में चातुर्मास में विराजित प. पू. गणाधीश पन्यास प्रवर विनयकुशलमुनिजी म.सा. की निश्रा में चातुर्मास की आराधना-साधना चल रही है।
रविवार को ‘पापों का इकरार- आत्मशुद्धि से परमपद की प्राप्ति’ विषय आयोजित विशेष प्रवचनमाला के तहत् विनयकुशलमुनिजी म.सा. ने उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि पाप करना दुष्कर नही है। अनादिकाल से इस जीव की प्रवृति पाप करने की रही है। भूतकाल में अंनत-अनंत बार पापों का सेवन किया है लेकिन पापों की सम्यक प्रकार से आलोचना करना अत्यंत दुष्कर-दुष्कर है।
विराग मुनि ने संबोधित करते हुए कहा कि आत्मा की चिंता करने वाले गुरू भगवंत मिलना अत्यंत दुष्कर है। प्रभु ने जो धर्म बताया और वर्तमान में हम जो धर्म कर रहे है उसमें जमीन-आसमान का अंतर है। प्रभु का धर्म हाथी जैसा था और वर्तमान में हम जो धर्म कर रहे है वो हाथी की विष्ठा जैसा है। भूतकाल में हमने मेरू शिखर जीतने रजोहरण का ढेर लग जाए उतनी बार संयम जीवन अंगीकार किया है लेकिन आत्मानुभूति वाला जीवन नही जीया इसलिए आजतक संसार में भटक रहे है। स्वकल्याण को गौण करके परकल्याण करना कतई संभव नहीं है।
मुनिश्री ने कहा कि जैसे-जैसे धन बढ़ा, सुख-सुविधाएं बढ़ी वैसे-वैसे पाप करने के साधन बढ़ते गए। जब जमीन ही खराब होगी तो खेती अच्छी कैसे होगी वैसे ही जब शील ही सुरक्षित नही है तो संस्कारित संतान की प्राप्ति कहां से होगी। मुनि श्री ने शंत्रुजय महातीर्थ के पट्ट के समक्ष उपस्थित जनसुमदाय को उनके पापों का मिच्छामि दुक्कड़ंम करवाया। प्रवचन में साध्वी विरतियशाश्रीजी व विनम्रयशा श्रीजी ने प्रेरक भजन सुनाये।
बाल संस्कार शिविर का हुआ आयोजन–
खरतरगच्छ चातुर्मास कमेटी के अध्यक्ष प्रकाशचंद संखलेचा व कोषाध्यक्ष सोहनलाल छाजेड़़ ने बताया कि रविवार को दोपहर में 2 से 3 बजे बाल संस्कार शिविर का आयोजन किया गया जिसमें सैकड़ों बालक-बालिकाओं ने भाग लिया। शिविर में विरागमुनिजी म.सा. ने जैन धर्म की प्रारम्भिक स्तर की जानकारी तथा बाल मानस को प्रभावित करने वाली प्रेरक कहानियां सुनाई। शिविर का संचालन उदय गुरूजी ने किया। ब्यावर खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष सतीश कुमार मेड़तवाल का संघ की ओर से अभिनंदन किया गया।