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पर्युषण महापर्व पर खोलें मन की गांठें : आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी

पर्युषण महापर्व पर खोलें मन की गांठें : आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी
बेंगलुरु। यहां अक्कीपेट स्थित जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाज में पर्युषण महापर्व की शुरूआत विशेष पूजन-अर्चन तथा साज-सज्जा आरती और विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों के साथ सोमवार को हुई। मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं का ताँता लगना शुरू हो गया था।
कार्यक्रमों का सिलसिला देर शाम तक चला। इस अवसर पर आठों दिन सुबह-शाम सामूहिक प्रतिक्रमण, भक्तामर पाठ व स्नात्र पूजा तथा दोपहर में जैन संगीत मंडल के बच्चों द्वारा विशेष भक्तिभावना व पूजा के साथ-साथ बच्चों के लिए भजन व दीप सज्जा प्रतियोगिता होगी।
जिन मंदिर में परमात्मा की  सुंदर अंगरचना के साथ ही पूरे परिसर की आकर्षक विद्युत सजावट भी की गई है। पयुर्षण पर्व के अंतर्गत हुए प्रवचन में आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी ने कहा कि यह पर्व इंसान को भगवान और आत्मा को परमात्मा बनाता है। उन्होंने कहा कि इस महापर्व के तहत प्रतिदिन देवदर्शन, सामायिक, प्रतिक्रमण व जीवमात्र के प्रति दया का भाव रखना चाहिये।
बारह व्रतों को धारण करने से जीवन में निर्मलता आती है और कषायों से बचा जा सकता है। आचार्यश्रीजी बोले, पर्युषण जिनशासन का महापर्व है। जिसके पास दूसरों की गलती को माफ करने की शक्ति है, वही सच्चे अर्थों में धर्मात्मा बन सकता है। पर्युषण का सारांश सभी जीवों को जीवनदान देना है।
हम अपनी शक्ति निर्बल को कुचलने में मानते हैं, प्रकृति की विराधना करते हैं इससे ही समस्त चक्र प्रभावित हो रहा है। मनुष्य ने वनस्पति के साथ जितना क्रूरतापूवर्ण व्यवहार किया है, उससे जीवन अशांत व अनीतिपूर्ण हो गया है। आचार्यश्री की प्रेरणा से एक दिवस पूर्व अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने चौसठ प्रहरी पौषध व सामूहिक अट्ठाई तपस्या प्रारंभ की।

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