Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

पति-पत्नी में हो समर्पण की भावना: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

पति-पत्नी में हो समर्पण की भावना: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने उपमिति भव प्रपंचा ग्रंथ की मूल कथा में ग्रंथ के एक मुख्य पात्र निष्पुण्यक नामक भिखारी की कर्मदशा की विवेचना करते हुए बताया कि जीवन में सद्बुद्धि बहुत आवश्यक है।

इससे जीवन में सकारात्मकता बढ़ती है। शरीर में उन्माद पैदा होने पर बुद्धि भ्रष्ट होती है। उन्होंने कहा शरीर के आरोग्य के लिए दो बातें जरूरी है-पथ्य भोजन और अपथ्य भोजन। पथ्य भोजन करने से शरीर निरोगी रहता है। हमें अपथ्य भोजन का त्याग करना चाहिए।

अपथ्य भोजन करने से आपका शरीर निरोगी नहीं रहेगा, बीमारी आती रहेगी। उन्होंने कहा जिसको बीमारी आने वाली है उसे अपथ्य भोजन की अभिलाषा ज्यादा होगी। उसे पथ्य भोजन में रुचि पैदा नहीं होगी। अपथ्य भोजन करने से शरीर में उन्माद पैदा होता है।

रोग तीन प्रकार के होते हैं साध्य रोग, असाध्य रोग और कष्ट साध्य रोग। उन्होंने कहा घर की छोटी घटना को तूल नहीं देना चाहिए। परिवार के सदस्य को कोई चीज पसंद नहीं है तो हमें हमारी मान्यता व विचारों में परिवर्तन कर देना चाहिए।

परिवार में पति पत्नी के बीच सामंजस्य होना अत्यावश्यक है। पति पत्नी जीवन साथी होते हैं, उनको एक दूसरे के साथ जीवन जीना है। दोनों को एक दूसरे के प्रति समर्पित रहना चाहिए।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar