माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के नमस्कार सभागार में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के सौवा सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि शास्त्रकारों ने निर्गन्थ और निर्गन्थी यानी साधु – साध्वी के लिए छह अवचन (बोलने लायक नहीं) बताये गये हैं, कल्पते नहीं| पहला हैं – अलीक वयणे, अयथार्थ भाषा बोलने से बचे| साधु को अयथार्थ बात करनी नहीं कल्पती| जैसे यथार्थ भाषा में भी अगर हिंसाकारकता लगे, हिंसा का दोष लगने की सम्भावना हो, वह बात साधु को नहीं करनी चाहिए, वहां मौन रह जाना चाहिए|
अलीक वचन आदमी गुस्सा, लोभ, भयभीत (डर) या हास्य के कारण बोलता हैं| साधु को डांट से बचने के लिए अलीक (झूठ) वचन नहीं बोलना चाहिए| डांट पड़ेगी, तो पड़ेगी, यहां डांट झेलोंगे, तो वहां डांट नहीं खानी पड़ेगी| खाना हो तो यहीं खालो, आगे के लिए डांट को उधार नहीं रखे|
आचार्य श्री ने दूसरे अवचन खिलित वचन यानि अवहेलना युक्त, किसी को निन्दीत करना, किसी को बदनाम करना, इस प्रकार की बात भी साधु को नहीं बोलनी चाहिए| तीसरा अवचन है – खिलचीत वचन, मर्म भेदी वचन| किसी की गुप्त बात उजागर हो, ऐसी बात नहीं करनी चाहिए| चौथी बात है – कटूक वचन| कड़वी भाषा, कठोर वचन बोलने से कर्मों का बंधन होता हैं|
साधु हो या गृहस्थ, कठोर वचन नहीं बोलना चाहिए| साधु का धर्म हैं, शांति रखना, दूसरा कुछ भी बोल दे, कुछ भी कर ले, साधु को कठोर नहीं बोलना चाहिए| पांचवे अगारसस्थित वचन के बारे में बताते हुए कहा कि गृहस्थ जैसी भाषा नहीं बोलना| ज्ञाती संबन्धीयों को मेरा जैसे मेरे पापा, बता कर नही बोलना, अपितु संसार पक्षीय नातिले शब्द लगाकर बोलना चाहिए| छठी बात है उपशांत कलह को उभारने वाला वचन| ऐसा वचन नहीं बोलना, कि वह पुराने कलह को फिर उजागर कर दे| गड़े मुर्दों को नहीं उखाड़ना चाहिए| जो बातें बीत गई या दूसरे को दूखित करने के लिए, मर्म भेदी वचन नहीं बोलने चाहिए|
आचार्य श्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि किसी कारण से, मजबूरी में, दुर्भाग्य या भाग्य से, न्यायालय में भी जाना पड़े, तो अलीक वचन नहीं बोलना चाहिए, चाहे सजा भुगतनी पड़ जाए, जेल जाना पड़ जाए, पर साधु को समता भाव रखना चाहिए| साधु का धर्म हैं कि न्यायालय हो या धर्मालय, कोई भी आलय हो, साधु को अलीक वचन बोलने से बचना चाहिए|
आचार्य श्री ने कथानक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि शास्त्रों में बताया गया हैं कि साधु कानों से बहुत सी बातें सुनता हैं, आँखों से बहुत सी चीजें देख लेता है, पर हर बात को मुंह से नहीं बोलता हैं|तो साधु का धर्म हैं कि जो बात अवाच्य, अवचनीय हैं, वो उन्हें नहीं बोलनी चाहिए| दुसरों की बात को फैलाने से भी बचना चाहिए| गोचरी के समय कोई ज्यादा वहरा दे, तो भी साधु को गुस्सा नहीं करना चाहिए, लोगों की भावनाओं में, उनको समझाना चाहिए, शांति रखनी चाहिए| गुस्से का वचन साधु को ओपता नहीं| साधु के तो शांति शोभती हैं|
चातुर्मासिक पक्खी, चौवदस पर मर्यादा पत्र (हाजरी) का वाचन कर, साधु – साध्वीयों ने लेख पत्र का समुच्चारण किया|
स्मृति सभा का आयोजन
शासनश्री रायकुमारीजी (जयपुर) की स्मृति सभा में आचार्य प्रवर ने साध्वी श्री का जीवन परिचय बताते हुए कहा कि उनका 88वें वर्ष में जयपुर में रविवार को देहावसान हो गया|
अखण्ड रूप से संघ में साधना कर, उनके देहावसान पर मध्यस्थ भाव के साथ मंगलकामना की| चार लोगस्स का ध्यान कर सभी ने भांवाजली दी|
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा एवं साध्वी श्री प्रमीलाकुमारी, साध्वी श्री यशोमती ने भी अपने विचार व्यक्त किये|
आचार्य श्री महाश्रमण के संसार पक्षीय भाई श्री श्रीचन्द दुगड़, व्यवस्था समिति की ओर से राकेश मेहता, जयन्तीलाल सुराणा, श्री सुरेश रांका, श्री सुरेश नाहर, श्री कमल आच्छा, श्री गौतमचन्द डागा, श्री विमल संचेती, श्री महेन्द्र माण्डोत, डॉ श्रीमती योगिता पुनमिया, श्री अशोक मुथा, दीया आच्छा, प्रवीण सुराणा ने विचारों के द्वारा एवं जय तुलसी संगीत मंडल, फोर ए एम ग्रुप और धनराज मालू ने गीतिका के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त की| कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए मुनि श्री दिनेश कुमार ने कहा कि द्वेष के समान कोई पाप नहीं और मैत्री के समान कोई तप नहीं| चातुर्मास प्रवास में सेवा देने वाले सेवार्थी डॉक्टरों का प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा सम्मान किया गया| अणुव्रत विश्व भारती द्वारा संचालित किड्स जोन के लिए सहयोग के लिए प्रवास व्यवस्था समिति का साधुवाद देते हुए सम्मान किया गया|
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति