चेन्नई.
पेरम्बूर जैन स्थानक में विराजित समकित मुनि ने कहा नादान वह होता है जो दूसरों में सुख खोजता है। सारी जिंदगी उनमें आसक्त होकर गुजारता है। यह दुनिया मुफ्त में किसी को कुछ नहीं देती, स्वार्थ के साथ देती है और स्वार्थ से ही जीती है। निस्वार्थ से तो केवल परमात्मा ही देता है। नवकार की शरण व तप का आलंबन लेते हैं और हृदय में श्रद्धा होती है तो कोई भी दुख-बीमारी नहीं आती। इस दुनिया में जितने भी नासमझ व नादान लोग हैं वे सब इस संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं। परमात्मा ने कहा तुम स्वयं अपने अंदर सत्य की खोज करो, तुम्हारे अंदर ही अनंत सुख है। नादान व्यक्ति अनंत नहीं क्षणिक सुख के लिए मेहनत व दौड़-धूप करता है।