कोडमबाक्कम वडपलनी जैन संघ प्रांगण में आज तारीख 1 अक्टूबर परम पूज्य सुधा कंवर जी मसा ने फ़रमाया कि नवपद ओली की शुरुआत है! नव पद ओली की आराधना से भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान बढ़ता है और यह ओली साल में 2 बार आती है! महाराजा श्रेणिक की पत्नी ने आयम्बिल महा तप करके नौ महीने में अपने कर्मों का क्षय किया था! आयम्बिल तप रूखा सूखा और नीरस होता है! यह तप करने से शरीर और मन स्वच्छ रहता है और इस तप की साधना से सभी कर्म नष्ट हो जाते हैं!
आगे श्रीपाल की कथा को बताते हुए कि जब श्रीपाल जी को मारने का षड्यंत्र रचा गया तो चिंतित महारानी अपने मंत्री का कहा मानकर रात्रि में अंधेरे में अपने बच्चे को लेकर जंगलों की तरफ निकल जाती है! अपने कर्मों को दोष देती हुई महारानी को एक कुष्ठ रोगी का सहारा मिल जाता है और राजमहल से जब सिपाही उन्हें ढूंढते हुए आते हैं तो कुष्ठ रोगी उन्हें समझा भेज देता है! कुष्ठ रोगियों के साथ रहते रहते श्रीपाल को भी कुष्ठ रोग हो जाता है और उसके लिए दवा लेने के लिए उसकी माता नगर से बाहर आती है!
उधर श्रेणी नगर में जो राजा राज करते थे उनके दो पत्नियां सौभाग्य सुंदरी एवं रूप सुंदरी थी! इन दोनों रानियों में रूप सुंदरी जैन धर्म का पालन करती थी! दोनों के एक एक बेटी थी! पंडित जी के पास शिक्षा समाप्त होने के बाद राज्यसभा में दोनों बेटियों को तरह-तरह के सवाल पूछे जाते हैं! उस समय रूप सुंदरी की बेटी मेना सुंदरी, जो जैन धर्म का पालन करती थी उसके एक जवाब से राजा क्रोधित हो जाता है! कैसा वर चाहिए इस सवाल के जवाब में मैना सुंदरी कहती है आप जो भी करेंगे जैसा भी करेंगे मुझे मंजूर है क्योंकि जो जैसा कर्म करता है वैसा ही प्राप्त करता है!
जा के क्रोध को शांत करने के लिए मंत्री जी उन्हें बाहर लेकर निकल जाते हैं जहां उन्हें रास्ते में कुष्ठ रोगियों का झुंड मिलता है और राजा के दिमाग में मैना सुंदरी के घमंड को चूर चूर करने के लिए एक ही विचार आता है! और मैना सुंदरी का विवाह एक कुष्ठ रोगी से करने के लिए श्रीपाल को पकड़कर लाते हैं और सारे नगर में विवाह की तैयारी का ऐलान कर देते हैं! इतना सुनते ही मैना सुंदरी की मां मूर्छित हो जाती है और तब मैना सुंदरी अपनी माता को गले लगा कर ढाढस बंधा ती है और कहती है जो कुछ भी होना है वह अपने अपने कर्मों के अनुसार होगा!
*क्रमशः*