चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा कि मनुष्य अपनी अज्ञानता की वजह से सुख प्राप्ति के लिए इधर उधर भटक रहा है और फिर भी सच्चे सुख की प्राप्ति नही हो पा रही है। सच्चे सुख और साश्वत की प्राप्ति सिर्फ धर्म मे हो सकती है।
जिस प्रकार से मनुष्य दान कर मोक्ष के मार्ग बना लेता है, उसी प्रकार से शांति, सील और धर्म कर संसार में रह कर सुखी बन सकता है। संसार मे रहते हुए मानव संयम में रहकर अपने जीवन को मर्यादित बना सकता है। उन्होंने कहा कि गृहस्त जीवन मे रह कर भी मनुष्य ब्रह्मचर्य और सदाचार जीवन का पालन कर सकता है।
परमात्मा कहते है कि ब्रह्मचर्य का मतलब आत्मा का रमन करना होता है। जिस समय श्रावक अपनी आत्मा का रमन और चिंतन मनन करते है वह ब्रह्मचर्य का जीवन जीने लगते है। यदि उत्कृष्ट भावना से इसका पालन किया जाए तो संसार मे रहते हुए अनंत सुखों की प्राप्ति की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि पहले के समय में हमारे बुजुर्ग उस परिवार को अपनी बेटिया देते थे जहां धर्म से लोग जुड़े हों और समाज में उनके धर्म की चर्चा हो। उनके पास पैसा भले ना हो ज्यादा लेकिन धर्म कर्म में आगे रहते हों। अगर संस्कारी बेटी या बहु कहीं जाएगी तो घर में शांति और धर्म का माहौल बना रहेगा।
धर्म मनुष्य को मर्यादा में रहने की शिक्षा देता है। लेकिन वर्तमान में अब ऐसा नहीं दिखता है। लोगों में संस्कार ही खत्म होते चले जा रहे हैं। चातुर्मास के चार माह मनुष्य को जीवन में निखार और मर्यादित करने का मौका लेकर आता है।
इस मौके का कुछ लोग लाभ लेकर अपना जीवन धन्य कर लेते है और कुछ लोग जहां है वहीं रह जाते है। जीवन में मर्यादा का होना बहुत ही जरूरी होता है। जो मनुष्य इनका अनुसरण करेगा उसका जीवन सफल हो जाएगा।