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धरती के मंदार – भगवान महावीर: साध्वी अणिमाश्री

धरती के मंदार – भगवान महावीर: साध्वी अणिमाश्री

भगवान महावीर निर्माण कल्याणक (दीपावली) पर विशेष आलेख

वीतरागता की अनुभूति में रमण करने वाली चेतना का नाम है भगवान महावीर। अध्यात्म के द्वारा अपना कायाकल्प करने वाली चेतना का नाम है- भगवान महावीर। सुख भोग के हजारों हजारों साधनों के बीच रहकर भी त्याग के शिखर का स्पर्श करने वाली चेतना का नाम है – भगवान महावीर। अहंकार और ममकार पर विजय प्राप्त करने के लिए स्वयं के साथ युद्ध करके परम विजेता बनने वाली चेतना का नाम है भगवान महावीर। दुनिया के बीच रहकर भी खुद को समझने वाली चेतना का नाम है- भगवान महावीर। राजसी ठाठ-बाट में पलकर महलों को त्याग, आत्मोत्कर्ष की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील का नाम है – भगवान महावीर।

विक्रम पूर्व 542 और ईसा पूर्व 499 की यह घटना है जब क्षत्रियकुण्ड ग्राम के महाराज सिद्धार्थ के राजमहल में महारानी त्रिशला की रत्नकुक्षि से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की मध्यरात्रि में एक शिशु ने जन्म लिया। पुत्ररत्न की प्राप्ति की खुशी में जन्मोत्सव करने के बाद राजा सिद्धार्थ ने नामकरण उत्सव में अपने सगे-सम्बन्धियों के बीच अनाम शिशु को वर्द्धमान नाम से पुकारा। यही बालक वर्द्धमान आगे चलकर भगवान महावीर के नाम से स्वनाम धन्य बना।
ज्ञातखण्ड उद्यान में वैशाली के हजारों हजारों लोगों के समक्ष गृह त्याग की घोषणा के साथ ही सन्यास के महापथ पर चरण गतिमान कर दिए। महावीर ने संन्यस्त होते ही संकल्प किया- मेरी स्वतन्त्रता में बाधा डालने वाली जो भी परिस्थितियां आएंगी में उनका सामना करूंगा। मगर कभी उनके सामने झूकूंगा नहीं। देह त्याग कर सकता हूं पर परतंत्रता मान्य नहीं। साधना के क्षेत्र में पुरुषार्थ का प्रचण्ड दीप प्रदीप्त करके, अनगिन बाधाओं को साहस और आत्मविश्वास के साथ सहजता से पार करके लगभग के साढ़े बारह वर्षों तक निरन्तर आत्म साधना में तल्लीन रहकर जंभियग्राम के निकट बहने वाली ऋजुवालिका नदी के उत्तरी तट पर स्थित जीर्ण चैत्य के ईशान कोण में शयामाक गाथापति के खेत में शाल वृक्ष के तले गोदोहिका आसन्न में वैशाख शुक्ला दशमी को केवल ज्ञान को प्राप्त किया। भगवान महावीर सर्वज्ञ, सर्वदर्शी बन गए। वैशाख शुक्ला एकादशी को मध्यपावा के महासेन उद्यान में विराजित होकर प्राणिमात्र के कल्याण की स्वतः स्फूर्त प्रेरणा अभिप्रेरित होकर प्रवचन प्रारंभ किया। ग्यारह विद्वान पंडित अपने 4400 शिष्यों के साथ सोमिल की यज्ञ वाटिका में उपस्थित थे। उन्होंने जब भगवान महावीर के समवसरण में प्रवचन की चर्चा सुनी तब अपनी गूढ़ जिज्ञासा का समाधान लेने एवं उस प्रभावशाली व्यक्तित्व में दर्शनों की ललक के साथ उस पुनीत सन्निधि में पहुंचे और उनसे दीक्षा स्वीकार करके उनके चरणों में जीवन समर्पित कर धन्य-धन्य बन गए।

भगवान महावीर ने लगभग तीस वर्ष तक सर्वज्ञ बनकर इस धरती को संबोधित किया। केवलज्ञान के आलोक में अनेक भव्यात्माओं को रास्ता दिखाया। मंजिल पाने की प्रेरणा दी एवं गन्तव्य तक पहुंचने का साहस जगाया। भगवान महावीर ने तत्कालीन समाज में प्रचलित अनेक कुरूढ़ियों को जड़ से मिटाने का प्रयत्न करके सफलता का वरण किया। अपने जीवनकाल के बहत्तरवें वर्ष में राजगृह से विहारकर अपापापुरी में आए। राजा हस्तिपाल की गजशाला में चातुर्मासिक प्रवास किया। वहां के राजा एवं जनता ने धर्म-तत्व का निरन्तर श्रवण किया। अपना निर्माण समीप जान गौतम को कहा- गौतम! निकट के गांव में सोम शर्मा नामक ब्राह्मण को धर्म का तत्व समझाना है। तुम जहां जाकर उसे संबोध दो। भगवान की आज्ञा शिरोधार्य कर गौतम वहां से चले गए।

दो दिन के उपवास में निरन्तर प्रवचन करते हुए अन्त में प्रवचन करते करते ही भगवान महावीर ने निर्माण को प्राप्त कर लिया। यह समय कार्तिक अमावस्या की रात्रि का था। ईसा पूर्व 527 में निर्वाण प्राप्त किया। भगवान महावीर निर्माण प्राप्ति के समय मल्ली और लिच्छवी गणराज्यों में दीप जलाए। असंख्य लोगों के अन्तःकरण को प्रकाशित करने वाले रश्मिपुञ्ज भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर आज भी उनके भक्त जन दीप जलाते है। तप-जप करते हुए भगवान महावीर का निर्वाण दिवस मनाते हैं। जिन शासन के श्रृंगार, धरती के मंदार, चरम तीर्थपति भगवान महावीर का यह निर्वाण कल्याणक सम्पूर्ण जैन समाज बड़े आनन्द और उल्लास के साथ सदियों से मना रहा है। अस्तु आज का यह दिन हम सबके लिए समूची मानव जाति के लिए कल्याणकारी हो।

स्वरुप चन्द दाँती
प्रचार प्रसार प्रभारी
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, चेन्नई

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