Share This Post

ज्ञान वाणी

दुर्व्यसनों से रहे दूर: आचार्य महाश्रमण

दुर्व्यसनों से रहे दूर: आचार्य महाश्रमण
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं – सूत्र के छठे अध्याय के चम्मालिसवेंं सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि शास्त्रकार ने छह प्रकार के प्रमाद बताये है – मद्य प्रमाद, निद्रा प्रमाद, विषय प्रमाद, कषाय प्रमाद, द्यूत प्रमाद और प्रतिलेखना प्रमाद

प्रमाद हमारी चेतना की, अपने प्रति अजागरूकता की, स्थिति होती हैं| जहां स्वयं के प्रति जागरूक, अध्यात्म लीनता होती हैं, वह अप्रमाद हैं|

जहां अध्यात्म से दूराव होता हैं, पदार्थ आदि के प्रति लगाव हो जाता हैं, जुड़ाव होता हैं, तो वह एक प्रकार की प्रमाद की स्थिति हो जाती है।

आचार्य हेमचंद्र ने बताया हैं, जहां अजागरूकता है, वहां प्रमाद हैं। मद्य-पान आदमी करता है, तो सुध-बुध खो देता हैं| शराब पीया हुआ, कही भी गिर जाता हैं प्रमाद में आ जाता है। निद्रा में अजागरूकता आ जाती है, गहरी निन्द में आदमी बड़बड़ा जाता हैं, खराब, हिंसा आदि के स्वप्न भी आ सकते हैं और प्रमाद हो जाता है।

मनोरंजन भरे, कर्ण प्रिय शब्दों में, रूप, गंध, भोजन आदि रस, और स्पर्श में आसक्ति आने से प्रमाद हो जाता है। कषायों – गुस्सा, अंहकार, माया, लोभ, राग-द्वेष में निमग्न होने से भी प्रमाद हो जाता है। गुस्से में आदमी इतना लीन हो जाता हैं, कि वह अपना विवेक को खो देता हैं| पता ही नहीं चलता, कि वह किसको और क्या बोल रहा हैं| जुआ खेलने वाला जुए में लीन हो जाता हैं, यह आत्मा से दूर करने वाली प्रवृत्ति हैं| जुए के कारण सम्पति भी साफ हो सकती हैं|

कथानक के माध्यम से प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री ने कहा कि व्यक्ति जुए के दुर्व्यसन में पड़, अपनी भौतिक सम्पदा के साथ, परिवार की मान-मर्यादा, परिवार के सदस्यों को भी दाव पर लगा लेता हैं| समाज में उसकी प्रतिष्ठा भी धूमिल हो जाती हैं| तो जुए से व्यक्ति अजागरूक हो जाता हैं और प्रमाद हो जाता हैं| छठे प्रमाद के बारे में बताया कि साधु के कपड़े ज्यादा हो, प्रतिलेखन में ज्यादा समय लग जाता हैं, तो स्वाध्याय आदि में बाधा आ सकती हैं, इसलिए एक प्रकार से प्रतिलेखना भी स्वाध्याय का शत्रु बन जाता हैं| प्रतिलेखन के समय बातों में लग जाए, तो प्रतिलेखना में, प्रमाद हो जाता है। साधु हो या गृहस्थ, प्रमादों से जितना हो सके, बचने का प्रयास करें|

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि चाहे होटल हो या हॉस्टल या हॉस्पीटल, देश हो या विदेश जायें, गृहस्थ भी शराब न पीये, जुआ न खेले। शादी – ब्याह, व्यावसायिक मिटींग या राजनैतिक पार्टी सभा, कहीं पर भी, कदाचित् भी मदिरा पान न हो| इसके प्रति पूर्ण जागरूकता रहनी चाहिए| शराब न पीने का त्याग संयम है। और परिवार के लोग भी ध्यान दे, कि हमारे किशोर – युवक इस दिशा में तो नहीं जा रहे| हमारा श्रावक समाज भी मदिरा-पान इत्यादि दुर्व्यसनों से बचकर रहे। प्रमाद से बच कर अच्छा काम करें, अच्छी साधना करें, यह अभिदर्शनीय हैं।

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कालू – यशोविलास का सुंदर वाचन किया। संस्था शिरोमणि जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के प्रधान न्यासी श्री कन्हैयालाल पटवारी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति देते हुए कहा कि हम जैन तेरापंथी है। धर्म की बात हमारे व्यवहार में आए। जैन तत्व क्या है, इसे समझे और सम्यक्त्व की आराधना करें। चातुर्मास व्यवस्था समिति के श्री गौतमचंद बोहरा, सभा उपाध्यक्ष श्री अशोक खतंग व श्री अशोक दुगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया।
✍ प्रचार प्रसार विभाग
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार

आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar