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ज्ञान वाणी

दुर्लभ मनुष्य जीवन को प्रमाद में नष्ट न करें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

दुर्लभ मनुष्य जीवन को प्रमाद में नष्ट न करें: उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. सोमवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रेक्टिल लाइफ सत्र में कायोत्सर्ग के बारे में बताया।

कायोत्सर्ग की मुद्राएं बताई। भगवान महावीर के प्रवचन के चार प्रकार थे- स्टोरी, गणित, फिलासोपी और क्रिया। जिनाज्ञा को बिना प्रश्न किए और शंका किए बिना स्वीकार करें। जिनाज्ञा को पूर्व के सभी तीर्थंकरों ने पालन किया, वर्तमान के कर कर रहे हैं और भविष्य में भी सभी करेंगे। यह आज्ञा मानी जाती है।

परमात्मा कहते हैं कि जिस समय आपका मन और शरीर पूर्णत: प्रसन्न है, आपका शरीर आपको सपोर्ट कर रहा होता है, उस समय आप साधना कर सकते हैं। ध्यान या साधना करने के समय का कोई दिशा, समय, स्थान का बंधन नहीं है। कहीं पर भी की जा सकती है।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि चार गति और ८४ लाख योनि परमात्मा ने बताई है। चार प्रकार के कषाय में से जीव से जिस कषाय की तीव्रता में कर्म होता है, उसी योनि का बंध होता है। देव, मनुष्य, तिर्यंच और नारकी की चारों गतियों में योनि ही उसका स्थान तय करती है कि किस गति में जीव का स्थान कहां होगा इसलिए तीन गति को कुगति भी और सुगति भी कहा गया है, जिनमें तीर्यंच, देव और मनुष्य अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी।

किसी भी गति से भयंकर योनि होती है। प्रमाद के कारण से योनि और कषाय के कारण से गति का बंध होता है। परमात्मा प्रभु इंद्रभूति गौतम को ३६ बार एक ही मंत्र दोहराते हैं कि प्रमाद मत कर। सबसे भयंकर इसी की सजा होती है, लेकिन व्यक्ति को स्वयं पता नहीं चलता कि वह प्रमाद कर रहा है। जीवन में दुर्घटनाओं के सारे कारण प्रमाद ही होता है। कषाय का जन्म ही प्रमाद के कारण होता है। परमात्मा कहते हैं कि प्रमादी जीव अनेक योनियों का बंध करता रहता है। इससे ही उसका चरित्र और स्वभाव जन्मजात मिलता है, सिखाना नहीं पड़ता, इसलिए प्रमाद को बहुत भयंकर कहा गया है।

हम राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ को समझ सकते हैं लेकिन प्रमाद समझ में नहीं आता है। जब दर्शनावरणीय घाती कर्म है जिसके उदय से सुख की अनुभूति होताी है और आराम, मनोरंजन, नाच-गाने, खाने-पीने में सुखों को महसूस करते हैं, जो प्रमाद का कारण बनता है। यह संसार व्यक्ति को प्रमाद में प्रवृत्त करता है और धर्म प्रमाद से जागरूक कर निवृत्त करता है। परमात्मा बार-बार चेतावनी देते हुए कहते हैं कि मनुष्य गति को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, जो शिखर उच्चता का शिखर होता है। इस जीवन में यदि प्रमाद करेंगे तो इस शिखर गति से भी जीव गर्त में गिर जाता है। यह जीवन की अनेक समस्याओं को जन्म देता है।

सुभद्रा यदि प्रमाद में नहीं जाती, निद्रा नहीं लेती तो अर्जुन द्वारा बताई गई चक्रव्यूह की संपूर्ण विद्या अभिमन्यु गर्भ में रहते हुए सीखता और युद्ध में मारा नहीं जाता। कैकेयी ने अपने अधिकारों को प्रमाद के कारण दुरुपयोग किया और अपने जीवन में दु:ख और अपयश को आमंत्रित किया। प्रमाद करने वाले को कोई बचा नहीं सकता, उसके समाधान ही उसके लिए समस्याएं बन जाते हैं। इसलिए कम से कम अंतिम समय में जो प्रमाद नहीं करते उनकी मृत्यु भी महोत्सव बन जाती है।

राजा श्रेणिक चरित्र में बताया कि श्रेणिक का पुत्र वारिसेन अपने मित्र को बेमन से दीक्षा लेने और लम्बे समय बाद भी संयम में प्रवृत्त नहीं होने पर उसे संयम का पाठ पढ़ाने के लिए अपने राजमहल में बेसमय लेकर जाता है। वहां पर सभी रानियों और भोग विलास सामने होते हुए भी वारिसेन को उनसे विमुक्त और संयम देखकर मित्र का मन भी विरक्त हो जाता है और वह भी वारिसेन के समान संयमी बनता है। एक बार परमात्मा के समवशरण में एक देव कुष्ट रोगी बनकर आता है उसके बारे में राजा श्रेणिक के पूछने पर परमात्मा उसके पूर्वजन्म में द्ररिद्र और कुष्ठ रोगी ब्राह्मण की कथा बताते हैं जिसने अपने स्वयं के आहार को एक तपस्वी के मासखमण के पारणे पर कराया और स्वयं निराहार रहा। जिसके पुण्यस्वरूप वह देव बना। यह दूसरों के लिए प्रेरणा थी कि तन रोगी हो तो भी मन निरोगी रह सकता है लेकिन मन रोगी तो तन निरोगी नहीं रह सकता। रोगी तन से भी यथासंभव धर्म कार्य कर पुण्योपार्जन किया जा सकता है।

तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि अपने पाप कर्मों से हमें डरना चाहिए, न कि कोई हमें पाप करते हुए देख ले इस बात से डरना चाहिए। बुरे कर्मों को करते हुए हम सोचते हैं कि हमें कोई नहीं देख रहा है लेकिन आप स्वयं तो उन्हें देख रही रहे हैं, आप स्वयं से अनभिज्ञ कभी नहीं रह सकते। जो इससे डरता है वही पंडित और बुद्धिमान कहलाता है और तभी धर्म की ओर बढ़ा जा सकता है। वह व्यक्ति कभी ना कभी पापों से सर्वदा मुक्त जरूर होता है।

तीन दिवसीय कर्मा शिविर की शुरुआत हुई जो 10 अक्टूबर तक चलेगा। 18 अक्टूबर को 8 बजे प्रात: उत्तराध्ययन सूत्र का भव्य वरघोड़ा निकाला जाएगा सी.यू.शाह भवन से एएमकेएम ट्रस्ट में पहुंचेगा।

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