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ज्ञान वाणी

दुख से मुक्त होने का साधन है आत्मानुशासन: आचार्य महाश्रमण

दुख से मुक्त होने का साधन है आत्मानुशासन: आचार्य महाश्रमण

सिरकाली. आचार्य महाश्रमण विभिन्न क्षेत्रों में धर्म प्रभावना करते हुए रविवार सवेरे सिरकाली पहुंचे जहां उनका सैकड़ों श्रद्धालुओं एवं विद्यार्थियों ने उनकी अगवानी कर स्वागत किया।

यहां से वे आंचलिया परिवार के निवास पर पहुंचे। यहां स्थित जैन स्थानक में आयोजित धर्मसभा में आचार्य ने कहा जीवन का परम लक्ष्य होना चाहिए सर्वदुख मुक्त होना। इसके लिए हमेशा पूर्णतया छुटकारा प्राप्त करना होता है। दुख आदमी को अप्रिय होता है। दुनिया का कोई भी प्राणी हो, वह दुख से दूर रहने की कोशिश करता है।

दुख शारीरिक और मानसिक भी हो सकता है। आत्मा का संयम करना अर्थात् आत्मानुशासन को दुख से मुक्त होने का साधन बताया गया है। आदमी दूसरों पर अनुशासन करता है अथवा करने की सोचता है, लेकिन आदमी को अपने स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। अपने शरीर, वाणी और मन पर अनुशासन कर लेने का परिणाम ही आत्मानुशासन होता है।

भोजन में मनोज्ञ पदार्थों के प्राप्त होने पर भी संयम रखना, वाणी का संयम रखना और आदमी को मन का गुलाम नहीं बल्कि मन को अपना गुलाम बनाकर रखने का प्रयास करें। इस प्रकार आदमी स्वयं पर अनुशासन (आत्मानुशासन) की सर्वदुखमुक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।

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