चेन्नई. ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा उच्च कोटि के देव बनने के बाद भी त्याग के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। इसलिए हमें त्याग प्रत्याख्यान करते रहना चाहिए।
प्रत्याख्यान ही मानव का पांचवां गुणस्थान है। उन्होंने कहा दश्वै कालिक सूत्र में कहा गया है कि जब तक बुढ़ापा नहीं आता धर्म कर लेना चाहिए।
बुढ़ापा आने के बाद इंद्रियां सक्रिय नहीं रहती। हमें अपने बच्चों को त्याग के संस्कार देने चाहिए। वरना आने वाले समय में वे पाश्चात्य संस्कृति में बहने लग जाएंगे।
एक चींटी को मारने से बचा लिया तो अभयदानी कहलाओगे। उन्होंने कहा प्रत्याख्यान पंचमगति का बेजोड़ प्लेटफार्म है। बिना त्याग का जीवन बिना पते के लिफाफे जैसा होता है।
साध्वी अपूर्वा ने कहा दया को धर्म कहा गया है। धर्म से सुख और पाप से दुख की प्राप्ति होती है। धर्म डूबते हुए प्राणी को तीराने वाला जहाज होता है। धर्म दानव को मानव और मानव को भगवान बना सकता है।R