जीवन का आधार है, प्राण धारण करना जीवन श्वास और प्राण इन दो तत्वों पर टिका है , जो श्वास लेता है वह जीता है जो खाता है वह जीता है जीवन के दो लक्ष्य बन गये श्वास लेना और जीना ।
आहार और रोग में गहरा संबंध है। रोग के आने का एक कारण है आहार का असंयम।आज के वातावरण में ही रोग के कीटाणु फैले हुए हैं। इतने जर्मस वायरस है कि व्यक्ति के रोगाक्रान्त होने की संभावना बनी रहती है ।
आहार का असंयम अति मात्रा में खाना, बहुत वस्तुएं खाना, बीमारी को आमंत्रण देना है ।आंतें पाचन तंत्र , आमाशय पित्ताशय सब परेशान हो जाते है उसे पचाने में ।
जो स्वास्थ्य जीवन जीना चाहते हैं , उनके लिए आहार का विवेक अनिवार्य हैं । उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के विद्वान सुशिष्य मुनिश्री रमेश कुमार जी ने स्वास्थ्य सप्ताह के अन्तर्गत आज खाद्य संयम स्वास्थ्य का आधार विषय पर प्रवचन करते हुए व्यक्त किये ।
जैन मुनि रमेश कुमार जी ने आगे कहा– आहार के विषय में प्राचीन काल से लेकर अब तक निरंतर चिंतन चलता रहा है। नए नए तथ्य खोजे जाते रहे हैं। आयुर्वेद ने भारतीय जीवन को बहुत प्रभावित किया है।
आहार के विषय में उसका निर्देश है कि हित् भुक्त मितभुक्त ऋत् भुक्त आदि से वह भोजन करो जो हितकारी हो, परिमित हो न्याय और प्रामाणिकता से अर्जित हो।
मेडिकल साइंस भी अब संतुलित आहार पोषक तत्वों लो जिससे शरीर स्वस्थ रहे। भोजन में कार्बोहाइड्रेट, वसा, लवण, क्षार,विटामिन- ये सब उचित मात्रा में हो। हम खाद्य संयम से अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं ।
अपने प्राग् वक्तव्य में मुनि सुबोध कुमार ने कहा गुरु के पास जाते हैं। उस समय आप स्नेह नजरों से देख कर, हाथ उठाकर आशीर्वाद दे दिया। आप निहाल हो जाते हैं इससे भी बढ़कर है स्वयं की आत्मा का कल्याण हो अनंत समय से दुख भोग रहे हैं ।
उस परम शांति के लिए संयम को स्वीकार करना होता है । संयम के अनेक प्रकार हैं । मन भाव तक पहुंचने पर आत्मा प्रदेश तक पहुंचा जा सकता हैं । आज की जिंदगी में चारों ओर आकर्षण ही आकर्षण है।
स्वर्ग के समान मार्केट बन गए हैं । आपका भी पदार्थ लेकर प्रदर्शन करने लग जाते हैं । अंदर से भी प्रदर्शन अच्छा हो तथा तन मन व भाषा में तारतम्यता न रहे तभी कल्याण के पथ पर बढ़ कर आगे बढ़ सकते हैं ।
*” संप्रसारक “*
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ ट्रस्ट ट्रिप्पीकेन चैन्नई