चेन्नई. शुक्रवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज का प्रवचन कार्यक्रम हुआ। उपाध्याय प्रवर ने जैनोलोजी प्रोक्टिकल लाइफ सत्र में कहा कि अपने अन्दर की कमजोरियों को पहचानें और उनका सही समय पर उपचार करें, प्रायश्चित करें तो आपकी शक्ति और सामथ्र्य बढ़ जाएगा। मनुष्य को अपने आत्मस्वभाव में रहना चाहिए। व्यर्थ की चिंताओं से बचना चाहिए।
परमात्मा ने कहा है कि शांति से रहना है तो जीवन के तीन कांटों को अपने जीवन से निकालना होगा। पहला- किसी के साथ चिंटिंग करते हैं तो आप स्वयं अपनी प्राण ऊर्जा में कांटा चुभो लेते हैं। अपने प्रगति के रास्तों को बंद कर लेते हैं।
जीवन का दूसरा कांटा है गलतफहमी। यदि सफाई दें तो भी गुनाहगार और नहीं देंगें तो भी गुनाहगार बने रहेंगे और सामने वाला इनडायरेक्ट बोलता रहता है। यह कांटा निकलना सबसे मुश्किल काम है। जो यह निकालने में सफल हो जाए वह सही चलता रहता है।
तीसरा कांटा है कुछ किया और बदले में मांगना। इससे बचने के लिए बदले में कुछ भी मांगना नहीं, सोचना नहीं और चाहना नहीं। आज के समय में सबसे ज्यादा मां-बाप इसी कारण से दु:खी रहते हैं।
भक्तामर की यात्रा में बताया कि आचार्य मानतुंग कहते हैं कि अपने जीवन में पाप के लिए खाली जगह नहीं छोड़ेंगे तो पाप आ नहीं पाएंगे। अपने अन्तर में खालीपन न रहे। ज्ञान, दर्शन और चरित्र रत्न हैं। जहां ज्ञान में अज्ञान न हो। जिस पर श्रद्धा करते हैं, उस श्रद्धेय को अपने जीवन में उतारें। श्रद्धा जब आपके जीवन को रोशन करने लगे तो जीवन हीरे सम हो जाएगा।
श्रद्धा ऐसी हो कि सपने में भी दोष देख नहीं सके। ज्ञान, दर्शन, चरित्र को रत्न बनाने के लिए इनका सघन होना जरूरी है। बादल यदि सघन होते हैं तो ही वर्षा हो पाती है नहीं तो बादल भी भटकते रहते हैं। आचार्य मानतुंग परमात्मा के प्रभाव की बात करते हुए कहते हैं कि परमात्मा के अष्ट महाप्राज्ञ हैं, जिनमें से अशोक वृक्ष, देव सिंहासन, देव दुंदुभि, देवपुष्प वृष्टि आदि देवकृत होते हैं। वे कहते हैं कि मोक्ष मेें जाना हो तो कर्म क्षय करना होता है और तीर्थंकर बनने के लिए कर्म या पाप क्षय करके पुण्य का बंध भी करना जरूरी है। अशोक वृक्ष जिसके नीचे परमात्मा विराजित हैं उसकी ऊंचाई परमात्मा से तीन गुना है। यह दूसरों को शोक मुक्त करता है।
आचार्य मानतुंग भक्तामर में परमात्मा के ऐश्वर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि तीर्थंकर परमात्मा की छाया में जाने वाले को कोई भी दु:ख या शोक नहीं रहता है। जो कुछ खोकर आपकी शरण में आता है उसे उस अशोक वृक्ष के समान तीन गुना अधिक प्राप्त होता है। आप तीर्थंकर परमात्मा के पास यह सामथ्र्य सहज है। उस अशोक वृक्ष के नीचे आप इस तरह शोभायमान हैं जैसे बादलों के बीच सूर्य प्रकाशमान हो रहा है। आपसे उसकी भी गरिमा बढ़ गई है। आप बर्फ से ढक़ी पहाडिय़ों के मध्य से निकलते हुए सूर्य के समान उन पहाडिय़ों को भी सोने के समान सुन्दर बनाने वाले हैं। आप सिंहासन पर विराजमान हैं, जिससे सिंहासन की गरीमा बढ़ गई है। आपका आसन पुरुषार्थ और पराक्रम का है। आप कंचन वर्ण के शरीर से सिंहासन पर बैठकर उसे भी शोभायमान कर रहे हैं।
वे कहते हैं कि दोनों ओर देव, असुरकुमार चंवर डुला रहे हैं और आप इस प्रकार सुशोभित हो रहे हैं जैसे दो निर्मल जल के झरनों के मध्य से पूर्णिमा का चन्द्रमा दृष्टिगत हो रहा हो। आपके तीन छत्रों की कांति सौम्य चंद्रमा के समान है जो सूर्य के प्रकाश को भी फीका कर देता है। तीनों जगत में आपका ऐश्वर्य प्रकाशमान हो रहा है। चहुं दिशाओं में दुंदुभि का स्वर गुंजायमान हो रहा है जो तीनों लोकों में शुभ संगम कराती है और सद्धर्म का जयकारा लगा रही है, जयघोष कर रही है। परमात्मा का प्रभामंडल असंख्य सूर्यों की प्रभा के समान सारे लोकों में फैल रहा है। वह सौम्य है लेकिन प्रखर और कष्ट देनेवाला नहीं है।
उपाध्याय प्रवर ने बताया कि श्रद्धा से ही सौम्यता आती है, अहंकार से नहीं। अपने तप के प्रति श्रद्धा रखेंगे तो प्रखरता नहीं, सौम्यता में वृद्धि होगी।
कार्यक्रम में सुभाष खांटेड़ के 5 वर्षों में 32 मासखमण की तपस्या और अर्चना सिसोदिया के 101वें आयंबिल तप की पच्चखावणी हुई। सुभाष खांटेड़ को स्थानकवासी समाज व चातुर्मास समिति द्वारा ‘तपोधनी’ उपाधि से अलंकृत किया गया और अर्चना सिसोदिया का सम्मान चातुर्मास समिति द्वारा किया गया। उपस्थित जनों ने तपस्वीयों के तप की अनुमोदना की।
8 से 10 अक्टूबर को 72 घंटे का कर्मा शिविर, 16 अक्टूबर को आयंबिल ओली की शुरुआत और 19 अक्टूबर से प्रात: 8 से 10 बजे तक उत्तराध्ययन सूत्र का कार्यक्रम रहेगा।