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तप का फलरूप प्राप्ति की इच्छा न करें: साध्वी कंचनकंवर

तप का फलरूप प्राप्ति की इच्छा न करें: साध्वी कंचनकंवर

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित साध्वी कंचनकंवर व साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधाÓ के सानिध्य में साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशुÓ ने जगत के समस्त जीवों, देव, मनुष्य, तीर्यंच सभी के कल्याणार्थ भगवान महावीर के श्रीमुख से अंतिम समय में निसृत देशना उत्तराध्ययन सूत्र के १४वें से १७वें अध्याय के मूल पाठ का वाचन किया गया।

भावसंक्षेप में तेरहवें अध्ययन चित-संबुद्ध में चित और संबुद्ध की आत्मा के पांच भवों तक लगातार साथ में रहने और छठे भव में बिछुड़ जाने के बारे में बताया।

आत्मकल्याण और संयम में जाति और कुल बाधक नहीं होते। संबुद्ध मुनि पांचवें भव में अपने तप और संयम का फल पाने की भावना करते हैं, जिससे उन्हें छठे भव में सुख-वैभव और ब्रह्मदत्त चक्रवती बनते हैं लेकिन सारी साधना को स्वाहा कर देते हैं।

वही चित मुनि राजा ब्रह्मदत्त के पास जात हैं और उनको पूर्वभवों के बारे में संयम के बदले किए निदान का पश्चाताप करने का कहते हैं। प्रभु कहते हैं अपने द्वारा किए गए धर्म कार्यों और तप, संयम को फलरूप में प्राप्त करने का मन में संकल्प या निदान न करें।

निदान से उसका फल तो मिल जाता है लेकिन सारा तप, संयम व्यर्थ हो जाता है। वे कहते हैं अब भी प्रतिक्रमण और आलोचना करो और शुद्ध हो जाओ, प्रभु आराधना करो, नहीं तो कितने ही भव और करने पड़ेंगे। जब कर्मों का उदय हो तो सही बात भी समझ में नहीं आती। वह मुनि को सांसारिक सुखों का भोग करने को कहते हैं।

चित मुनि अपने पूर्व पांच भवों के भाई को भी अपने साथ मोक्षमार्ग पर लाने का बहुत प्रयास करते हैं कि यह नरक में न जाए। संसार के गीत कल विलाप में बदलेंगे,   सब नाटक विडम्बना है, सब आभूषण भाररूप है, सब कामभोग दुखरूप है। यह क्षणमात्र का सुख दुखकारी परिणाम है।

इस प्रकार दोनों एक भोग और दूसरा योग मार्ग को श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहते हैं। चितमुनि अंत में नियति पर सब छोड़, स्वयं को संयम में पूर्ण करते हुए मोक्षगामी होते हैं और ब्रह्मदत्त सातवीं नरक में जाते हैं। चौदहवें अध्ययन इक्षुकार में छह जीवों इक्षुकार राजा, रानी कलावती, भृगु पुरोहित और जसा भार्या के साथ भृगु पुरोहित के दो पुत्रों का वर्णन किया।

धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने विभिन्न तप के पच्चखान लिए। चेन्नई के अनेकों उपनगरीय क्षेत्रों से अनेकों श्रद्धालु दर्शनार्थ उपस्थित रहे। उत्तराध्ययन सूत्र के मूल पाठ का वाचन प्रात: 8 बजे से और विवेचन 9 बजे से तथा रात्रि 8 से 9 बजे नवकार महामंत्र का सजोड़े जाप गतिशील है।

19 से 20 अक्टूबर को एक्युपंचर चिकित्सा शिविर का आयोजन होगा तथा उड़ान टीम द्वारा प्रतियोगिताओं का आयोजन और सम्मान किया जाएगा।

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