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तपस्या की अनुमोदना से भी आत्मशुद्धि : मुनि सुधाकर

तपस्या की अनुमोदना से भी आत्मशुद्धि : मुनि सुधाकर

माधावरम्, चेन्नई  ; श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ माधावरम ट्रस्ट के तत्वावधान में मुनि श्री सुधाकरकुमारजी एवं मुनि श्री नरेशकुमारजी के सान्निध्य में तप अभिनन्दन कार्यक्रम में जय समवसरण में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री सुधाकरजी ने कहा कि भगवान महावीर ने बारह प्रकार की तपस्याएं बनाई है। उनमें निराहार तपस्या का प्रमुख स्थान है। जिनका आत्मबल महान होता है, वे ही इस प्रकार की तपस्या कर सकते है।

भगवान महावीर ने अहिंसा, संयम और तपस्या की त्रिवेणी में स्नान करने पर बल दिया है, तीनों का गहरा सम्बन्ध है। तप के बिना संयम नहीं और संयम के बिना अहिंसा की साधना नहीं हो सकती। असंयम और उपभोगवादी मनोवृत्ति से हिंसा का जन्म और विस्तार होता है। आज जो हिंसा और भष्ट्राचार की समस्या का विकराल रूप दिखाई दे रहा है। उपभोगवादी मनोवृत्ति उसका प्रमुख कारण है। विवेक पूर्वक तपस्या करने से हमारी वृत्तियों का शोधन और परिवर्तन हो जाता है।

  इस अवसर पर श्रीमती शालिनी आच्छा ने 9 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आच्छा परिवार की बहनों ने सुमधुर गीतिका का संगान किया। श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ माधावरम ट्रस्ट की ओर से तपस्वी बहन का अभिनंदन श्री लालचंद मेहता ने किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन श्री सुरेश रांका ने किया।

  समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

            स्वरुप चन्द दाँती

              मीडिया प्रभारी

श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट, चेन्नई

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