*☀️प्रवचन वैभव☀️*
*🪷 सद् उपदेशक:🪷*
*युग प्रभावक कृपाप्राप्त*
मुनि श्रीवैभवरत्नविजयजी म.सा.
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तत्त्व स्वरूप के प्रति
श्रद्धा को समकित कहते हैं..!
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समकित के बिना
चारित्र नही हो सकता.!
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तात्त्विक धर्ममार्ग
समकित से शुरू होता है.!
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स्वयं की स्वयं के
आत्म स्वरूप के प्रति
श्रद्धा को समकित कहते हैं.!
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किसी कारणवश
आचरण में आई कमी
क्षम्य हो सकती हैं लेकिन
श्रद्धामें आंशिक
कमी भी अक्षम्य हैं.!
*(श्री ओलीजी पर्व प्रवचन-७)*
*🦚श्रुतार्थ वर्षावास 2024🦚*