चेन्नई. साहुकरपेट में विराजित श्रुतमुनि और अक्षरमुनि ने कहा कि तीर्थकारों के अनुसार जो व्यक्ति क्षण को जानता है वही पंडित है। साधारण लोग अतीत या भविष्य में जीने के अभ्यासी होते हैं। ऐस व्यक्ति को कर्म का बंधन होता है।
ज्ञानी व्याक्ति सोए हुओं के बीच जागृत रहता है। जिसकी जैसी भावना रहती है वैसा ही परिणाम प्राप्त करता है। अपवित्र भावना से किए गए दान, तप,सेवा सब व्यर्थ हो जाते है। शुद्ध भावना से व्यक्ति कुछ भी किए बिना जगत का स्वामी बन जाता है।
हम अनावश्यक और निंदनीय भावना में पडक़र अपना समय नष्ट करते हैं।