ज्ञानशाला रूपी फुलवारी विकसित होती रहे: आचार्य श्री महाश्रमण
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के तत्वावधान में, ज्ञानचन्द प्रकोष्ठ के अन्तर्गत त्रिदिवसीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक सम्मेलन एवं दीक्षांत समारोह 2018 का शुभारंभ परम् पूज्य आचार्य प्रवर के मंगल पाठ के साथ हुआ|
इस अवसर पर आचार्य श्री ने ज्ञानशाला के प्रशिक्षकों एवं व्यवस्थापकों को संबोधित करते हुए कहा कि ज्ञानशाला, बालपीढ़ी के संघ निर्माण, संस्कार निर्माण, ज्ञानवर्दन के लिए बहुत महत्वपूर्ण उपक्रम हैं| इसमें जुड़े हुए लोग जो निर्वद्य प्रयास करते हैं, आध्यात्मिक सेवा करते हैं, वे अपने आप में अनुमोदनीय हैं| प्रशिक्षकों के बारे में कहते हुए आचार्य श्री ने कहा कि कितने-कितने लोग इसमें प्रशिक्षण देते हैं| वे स्वयं पहले प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, देने वाले प्रशिक्षकों को, प्रशिक्षण देते हैं|
महासभा द्वारा संचालित ज्ञानशाला बहुत ही फैला हुआ, विस्तृत कार्य हैं| जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा, जो तेरापंथ समाज की “संस्था शिरोमणि“, प्रतिनिधि संस्था हैं, जिसके तत्वावधान में यह बालपीढ़ी में सत् संस्कारों का बीजारोपण हेतू ज्ञानशाला का उपक्रम चलता हैं| यह ज्ञानशाला की फुलवारी खुब विकसित होती रहें| इस फुलवारी की अच्छी रक्षा होती रहे, यह फुलवारी आनन्द देने वाली रहे|
अनाग्रह, अनेकांतवाद से सुलझती हैं गुत्थियां
आचार्य श्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अनाग्रह, अनेकांतवाद से अनेक गुत्थियां सुलझ सकती हैं| हमारे विचारों में दुराग्रह-आग्रह न हो| क्या पता? किस अपेक्षा से बात कही गई है, उस अपेक्षा को सामने रखा जाये, तो बात का हल निकल सकता हैं| भेद में अभेद छिपा हो सकता हैं| एक आदमी एक तरफ से और दूसरा दूसरी तरफ से खींचते हैं, तो रस्सी टुटेगी और दोनों नीचे गिर जायेंगे| अगर एक खींच रहा हैं और दूसरा ढ़ीला छोड़ दे तो पहला गिर जायेगा, पर यदि दोनों ढ़ील छोड़ दे तो कोई नहीं गिरेगा|
हमारे जीवन में न हो खींचातान
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारे जीवन में खींचातान न हो, समझने का प्रयास हो, अपेक्षाओं से, समझने से बात समझ में आ सकती हैं| जहां सहिष्णुता, सापेक्षता, सहअस्तित्व और समन्वय हो, तो दुराग्रह, वैर विरोध, दुश्मनी आदि दूर हो सकती हैं|
ठाणं सूत्र के छठे स्थान के पच्चीसवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि जम्बुद्वीप जिसमें हम रह रहे हैं, उसके भरत और ऐरावत क्षेत्र में जो अतीत में अवसर्पिणी के सुषम सुषमा आरे के मनुष्य की लम्बाई 6000 धनुष्य और आयुष्य छह अर्धपल्योपम यानि तीन पल्योपम का होता था| उनका शरीर भी लम्बा और आयुष्य भी लम्बा होता था|
आत्मा के प्रदेशों में न्युनाधिकता नहीं होती
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारी सृष्टि सदा, सर्वत्र एकरूप नहीं रहती, परिवर्तन भी आता रहता हैं| आदमी के जीवन में भी परिवर्तन आ सकता हैं| कुछ तत्व तो स्थाई, तो कुछ परिवर्तनशील होते हैं| उसमें उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्य भी होता हैं| जैसे हमारी आत्मा के असंख्य प्रदेश हैं| असंख्य प्रदेश की पिण्ड आत्मा ध्रौव्य हैं| जो आत्मा का चेतन गुण हैं, वह था और आगे भी रहेगा, इसकी समाप्ति नहीं होगी, ये शाश्वत हैं| आत्मा के असंख्य प्रदेश थे, है और रहेंगे| किसी की भी ताकत नहीं, कि कोई इनको घटा बढ़ा सके|
यह सृष्टि का नियम हैं, शाश्वत हैं, आत्मा के प्रदेशों में न्युनाधिकता नहीं होती| आत्मा के असंख्य प्रदेश फैल जाएं, तो पूरे लोकाकाश को छू लेते हैं, व्याप्त हो जाते हैं| अत: आत्मा ध्रुव हैं, शाश्वत हैं, स्थाई हैं, परन्तु पर्याय परिवर्तनीय हैं| आज मनुष्य गति में हैं, कभी देव, नरक या तिर्यंच गति में रही हो सकती हैं| मनुष्य में भी पर्याय परिवर्तन होता है, कभी छोटा बच्चा, कभी किशोर, जवान और कभी वृद्ध|
विचारों में भी हो सकती परिवर्तनशीलता
आचार्य श्री ने आगे कहा कि हमारी सृष्टि में भी ध्रुवता भी है और परिवर्तनशीलता भी हैं| द्रव्यों में ही नहीं, विचारों में भी परिवर्तनशीलता हो सकती हैं| एक व्यक्ति नास्तिकवादी,कभी आस्तिकवादी बन जाता हैं, हिंसक, हत्यारा, अहिंसक बन सकता हैं, यह भावात्मक, विचारात्मक परिवर्तन हो सकता हैं| एक व्यक्ति ने सोने के प्याले से चमच बना लिए| आज जो चमच है, वह नया उत्पाद है| जो प्याला था उसका व्यय, विनाश हो गया और वह स्वर्ण प्याले में भी था और चमच में भी हैं, यह स्वर्ण ध्रुव हैं|
पुद्गल न बढ़ते हैं, न घटते हैं
आचार्य श्री ने कहा कि जैन दर्शन एकान्त नित्यवाद या एकान्त अनित्यवाद नहीं, अपितु नित्यानित्यवाद हैं| जैसे दीये से लेकर आकाश तक सारे पदार्थ समान स्वभाव वाले होते हैं| नित्य हैं, अनित्य हैं, यह स्यादवाद हैं| कोई कहे आकाश नित्य हैं और दीया अनित्य हैं, ये नहीं होता| एक दीया जल रहा हैं, लौ बुझ गई, अनित्य हो गया, पर लौ में जो पुद्गल थे, वे आज भी कही पर हैं| संसार में जो पुद्गल है, न बढ़ते हैं, न घटते हैं| दीया टुट गया, पर वे पुद्गल नित्य हैं|
आचार्य श्री ने कहा कि आकाश में भी पर्याय परिवर्तन मान्य हैं| आज आकाश का कुछ हिस्सा जो यह *महाश्रमण समवसरण* हैं, के रूप में काम आ रहा हैं, कल आयेगा कि नहीं, पर्याय बदल सकता हैं| तो पर्दाथ किसी दृष्टि से नित्य हैं, तो किसी दृष्टि से अनित्य भी हो सकता हैं| परिवर्तनशीलता, ध्रुवता ये सृष्टि के नियम हैं| इतना लम्बा शरीर, लम्बा आयुष्य भी बढ़ता भी है और घटता भी हैं|
आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान की हुई आयोजय साधारण सदन
आचार्य श्री ने आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान, गंगाशहर की आयोजय साधारण सभा के निमित कहा कि इस संस्था को केन्द्रीय संस्था का दर्जा प्राप्त हैं| जो आचार्य तुलसी के महाप्रयाण से जुड़ी हुई हैं| इस संस्था का जैसा नाम हैं, “नैतिकता का शक्तीपीठ“, तो इस संस्थान से नैतिकता की प्रेरणा, नैतिकता के कार्यक्रम और उचित ज्ञानात्मक कार्यक्रम चलते रहे, यह अभिदर्शनीय हैं|
प्रतिष्ठान के अध्यक्ष श्री लूणकरण छाजेड़ ने आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान की गतिविधियां निवेदित करते हुए कहां कि प्रतिष्ठान आध्यात्मिक कार्यों के साथ-साथ लोक कार्य भी निष्पादित होते हैं| आचार्य तुलसी कैंसर सेन्टर में प्रेक्षाध्यान पर शोध कार्य होता हैं, जो रोगी नियमित इलाज के साथ प्रेक्षाध्यान, योग करते हैं एवं जो नहीं करते, उन पर क्या प्रभाव पड़ रहा हैं, उस पर रिचर्स होता हैं, इसके बहुत ही सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं|
महासभा अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला ने कहा कि ज्ञानशाला के ज्ञानार्थीयों ने तेरापंथ धर्मसंघ को ऊचाईयां दी हैं| ज्ञानशाला प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक श्री सोहनराज चौपड़ा ने ज्ञानशाला की विस्तृत जानकारी निवेदित करते हुए कहा कि देशभर में 487 ज्ञानशालाओं में लगभग 17800 ज्ञानार्थी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, ज्ञानार्जन करते हैं| जिसमें लगभग 3600 प्रशिक्षक अपनी निस्वार्थ भाव से सेवाएं देते हैं| तेरापंथ एकरूपता का प्रतीक हैं, उसी अनुरूप एकरूपता से देश भर में ज्ञानशालाएँ संचालित होती हैं| ज्ञानशाला चेन्नई की प्रशिक्षिकाओं ने मधुर गीत का संगान किया|
इस अवसर पर जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा ज्ञानशाला राष्ट्रीय प्रशिक्षक श्री निर्मल जी नौलखा, श्री डालमचन्दजी नौलखा, तमिलनाडु संयोजक श्री कमलेश बाफणा, चेन्नई ज्ञानशाला संयोजक सुरेशचन्दजी बोहरा के साथ देशभर से समागत प्रशिक्षक गण, व्यवस्थापक उपस्थिति थे|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति