चेन्नई. कोडम्बाक्कम-वडपलनी जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा कि जैसा जिसका कर्म होगा वैसा ही उसे फल भी मिलेगा। मानव भव के महत्व को समझते हुए मनुष्य को अच्छे कर्म कर डूबती हुई नैया का पार लगा देना चाहिए। जिनवाणी को ग्रहण कर आचरण में लाना बहुत कठिन होता है।
लेकिन प्रभु वाणी डूबती नैया को पर लगाने का माध्यम है। संसार से पार और जीवन उद्धार करना जिनवाणी से ही सम्भव है। उन्होंने कहा कि मनुष्य संसार के मोह माया में फंसा है जिसकी वजह से हर चीज के पीछे भव भ्रमण लगा है। इसे मिटाने के लिए गुरु के सानिध्य की जरूरत है। कहीं भी कभी भी प्रवचन के लिए तैयार रहने वाले मनुष्य ही असली भक्त होते है।
जिस प्रकार से दूध, दही हर वक्त खाकर मन तृप्त होता है उसी प्रकार से भक्ती सदा बहार होना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरु भगवंत मनुष्य के अंधकार रूपी जीवन में प्रकाश डालने का कार्य करते है।
इस लिए मनुष्य को समय के महत्व को पहचान लेना चाहिए, क्योंकि जो समय को पहचानते है उन्हें समय भी पहचानता है। एक बार समय व्यर्थ होने के बाद वापस लौट कर नहीं आता। बिना मन के भी प्रभु की वाणी सुनने वालों का उद्धार हो जाता है। जीवन में बदलाव चाहिए तो धर्म के मार्ग पर चलना सीखना होगा।