चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा हर जीव के प्रति मैत्री का भाव रखना चाहिए। शत्रु पर भी मैत्री भाव रखने से सामने वाले में परिवर्तन आ जाता है और शत्रु भी मित्र बन सकता है। व्यक्ति के जैसे भाव होते हैं उसका सामने वाले पर वैसा ही प्रभाव पड़ता है।
सामने वाला भले ही कितने ही शत्रुता का व्यवहार करें लेकिन जीव को प्रतिकार न करते हुए शांत रहना चाहिए। जो सौम्य, शांत रहता है उसका कोई भी शत्रु नहीं रहता । स्वभाव में रत आत्मा मित्र है तो विभाव में आत्मा ही शत्रु के समान होती है। मुनि ने कहा जिस समय व्यक्ति के अहं पर चोट लगती हैं तो वह क्रोध आवेश में चला जाता है ।
शारीरिक चोट का इलाज तो फिर भी हो सकता है लेकिन अहं की चोट का इलाज करना ज्यादा जरूरी है। अभिमान करने वाला व्यक्ति यदि संभलता नहीं है तो कालांतर उसके परिणाम उसको भुगतने पड़ते हैं ।
कभी किसी के घर तोडऩे का काम नहीं किया जाना चाहिए। मुनिवृंद के सानिध्य में 110 महिलाओं द्वारा 16 सती साधना निरंतर गतिमान है।