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ज्ञान वाणी

जीव स्वयं कर्मों का कर्ता और भोक्ता : आचार्य श्री महाश्रमण

जीव स्वयं कर्मों का कर्ता और भोक्ता : आचार्य श्री महाश्रमण

*तेरापंथ विश्व भारती” परियोजना का लोकार्पण*

*संघीय स्मारक समिति का महासभा में विलीनीकरण*

माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में परम पावन शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने मंगल उद्बोधन में ठाणं सूत्र के दूसरे स्थान में वेदनीय कर्म के दो प्रकार – सात् वेदनीय, असात् वेदनीय कर्म पर विवेचन करते हुए कहा कि पच्चीस बोल में दसवां बोल है – कर्म आठ, उसमें तीसरे कर्म का नाम है वेदनीय कर्म|

वेदनीय कर्म का बंधन क्यों होता है? आचार्य श्री ने कहा कि चार शब्द है प्राण, भूत, जीव और सत्व| संसार की समस्त जीव राशि को इन चार भागों में विभक्त किया गया है – दो, तीन, चार इंद्रियां वाले जीव प्राण, वनस्पति के जीव भूत, पंचेंद्रिय वाले जीव, और शेष पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजसकाय एवं वायुकाय के जीव सत्व कहलाते है, इनके प्रति अनुकंपा नहीं तो असात् वेदनीय कर्म और अनुकंपा तो सात् वेदनीय कर्म का बंधन होता है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि सभी प्राणियों को पीड़ित करने से,सताने से, अपने अधीन करने से असात् वेदनीय कर्म का बंधन होता है| जब यह उदय भाव में आता है, तो शरीर रूग्ण हो जाता है, प्रतिकूल स्थितियाँ आ जाती हैं|

परिवार, भाई बंधु, मित्रगण, डॉक्टर इत्यादि चाह कर भी दुख को कम नहीं कर सकते, स्वयं प्राणी को ही दुख भोगना पड़ता है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि प्राणियों के प्रति अनुकंपा, दया, करूणा का भाव रखने से सात् वेदनीय कर्म का बंधन होता है, जिससे जीव का स्वास्थ्य अच्छा रहता है, अनेक सुखों की प्राप्ति होती है| कर्मों के बंधन से मुक्त होने के लिये हमें त्याग, संयम की चेतना को जगाना चाहिए|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि कर्म मुक्ति के दो हेतू है संवर और निर्जरा| सामायिक न शुभ योग है, न अशुभ योग है, वह संवर है| संवर से आश्रव द्वार यानी कर्म बंधन को रोका जा सकता है|

*सामायिक में हम स्वाध्याय, अनुप्रेक्षा, ध्यान, प्रवचन श्रवण आदि शुभ प्रवृति में लीन होने से शुभ योग होता है और शुभ योग से निर्जरा होती हैं एवं निर्जरा के साथ पुण्य का बंधन होता है| त्याग तपस्या से निर्जरा होती हैं, बंधे हुए कर्मों का क्षय होता है|*

आचार्य श्री ने आगे कहा कि तपस्या में जप, स्वाध्याय आदि का प्रयोग होने से और अधिक कर्मों की निर्जरा होती हैं, कर्म काटने का अमोघ साधन हैं तपस्या, इससे पूर्वकृत पाप जड़ते हैं और निर्जरा की साधना होती हैं| तपस्या आडम्बर मुक्त हो|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि *जीव स्वयं कर्मों का कर्ता और भोक्ता हैं, अन्य कोई नहीं| अत: जीव हर समय कर्म बन्धन से बचने का प्रयास करें|*

साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने श्रावक समाज को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे *सूर्य और किरण दो भी होते हैं और एक भी होते हैं, वैसे साधु और साध्वी भी अपने आप को आचार्य में विलीन कर, वे अपनी स्वसाधना करते हुए, संघ और संघपति के प्रति समर्पण भाव कर परकल्याण में सहभागी बने|*

*तपस्या की लग रही झड़ी*

पूज्य गुरूदेव के सान्निध्य में तपस्वी श्री मनीष डांगरा ने 30 दिन, श्रीमती सज्जनबाई झंवर ने 25 दिन, श्रीमती मनोजबाई भूरा ने 21 दिन, विकास भंसाली एवं सुनीता बाफणा ने 9 दिन की परम पूज्य आचार्य प्रवर के श्री मुख तपस्या का से प्रत्याख्यान किया|

*एक और मुमुक्षु बहन को समण प्रतिक्रमण का आदेश*

परम पूज्य आचार्य प्रवर ने चेन्नई में आगामी 11 नवम्बर को आयोजित दीक्षा महोत्सव में *मुमुक्षु रेखा जैन कालांवाली (हरियाणा)* को समणी दीक्षा देने का आदेश फरमाया|

*”तेरापंथ विश्व भारती” परियोजना का लोकार्पण*

महासभा प्रतिनिधि सम्मेलन के द्वितीय दिवस पर जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा की एक नई एवं महत्वाकांक्षी परियोजना “तेरापंथ विश्व भारती” का परम पूज्य आचार्य प्रवर के सान्निध्य में लोकार्पण महासभा के मुख्यन्यासी श्री कन्हैयालाल जैन, महासभा अध्यक्ष श्री हंसराज बैताला एवं पदाधिकारीयों ने किया और फाउन्डर पैटर्न 33 ट्रस्टीयों ने पूज्य प्रवर से मंगल पाठ सुना|

*संघीय स्मारक समिति का महासभा में विलीनीकरण*

तेरापंथ धर्मसंघ के विभिन्न स्थानों पर बने स्मारकों के रख रखाव एवं अन्य समस्त सार संभाल का दायित्व महासभा को सौपा गया| श्री लक्ष्मीलाल पौकरणा ने संघीय स्मारक समिति का तेरापंथी महासभा को दायित्व हस्तांतरण किया| महासभा की तरफ से स्मारक समिति के संयोजक श्री मर्यादा कुमार कोठारी ने संयोजकीय दायित्व को ग्रहण करते हुए अपने विचार व्यक्त किये|

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