जीवन को सफल बनाना है तो आयंबिल कर लेना चाहिए, कर्म निर्जरा के लिए यह सबसे अच्छा साधन है। धर्म की शुरुआत विनय से होती है, जीवन में विनय नहीं तो धर्म नहीं। सागरमुनि ने कहा विशालता आने के बाद ही मनुष्य के जीवन में साधुता आती है और वे ऊपर उठता है। विशालता आने से मनुष्य को उच्च स्थान मिलता है।
ऐसे में मनुष्य के जीवन में भी विशालता होनी चाहिए। साधना और तप होने पर मनुष्य में साधुता आती है। धर्म और तप की आराधना करना ही संयम होता है। अपना लक्ष्य प्राप्त करने की जिसमें धुन होती है वही साधु कहलाता है। जो जीवन को बदलने का प्रयास करते है उनका जीवन बदल भी जाता है।
सोच कर बैठने वालों के हाथ कुछ भी नहीं आता। पुरुषार्थ करना बहुत ही कठित होता है लेकिन बिना इसके जीवन सफल भी नहीं हो सकता। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनन्दमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।