चेन्नई. पाडी जैन स्थानक में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा इन्सान जन्म से मृत्यु तक दौड़ता ही रहता है और दौड़ते-दौड़ते ही दम तोड़ देता है। आज भागदौड़ की जिंदगी में आदमी आगे जा रहा है पर प्रगति कितनी हुई यह जानना आवश्यक है।
जीवन में गति के साथ प्रगति भी होना जरूरी है। यदि गति सही दिशा में है तो प्रगति होगी अन्यथ दुर्गति में जाना पड़ेगा। जिस प्रकार भौतिक क्षेत्र में इन्सान काम-धंधे में आगे बढऩे का प्रयास करता है उसी प्रकार आध्यात्मिक दृष्टि से भी धर्माराधना में निरंतर अभिवृद्धि होनी चाहिए।
मुर्दे में न तो गति रहती है और न ही कोई प्रगति होती है। जहां चेतना है वहां गति के साथ प्रगति होनी चाहिए। मुनि ने कहा मानव भव मूल पूंजी के समान है जो पुण्यवानी के फलस्वरूप प्राप्त होती है।
इसे पाने के बाद जो धर्माराधना में रत रहता है वह उत्तरोत्तर वृद्धि करते हुए सद्गति पा लेता है और जो पूर्व उपार्जित पुण्य को खर्च कर डालता है वह कदापि सफल नहीं हो सकता। जिसके पास पुण्य रूपी पूंजी है वह हर क्षेत्र में विकास करता है।
पूंजी को संभालकर रखना भी एक बड़ी चुनौती है। जो पुत्र अपने पिता की प्रतिष्ठा एवं संपत्ति को बढ़ाने के बजाय उसे धूमिल कर देता है वह समाज के लिए एक कलंक है।
जिस प्रकार ऊपर चढऩे में कठिनाई होती है नीचे उतरने में नहीं, उसी प्रकार जीवन का निर्माण करने के लिए व्यक्ति को पुरुषार्थ करना पड़ता है बर्बाद करने के लिए नहीं।
अत: व्यक्ति को अपने जीवन को व्यसनों एवं बुरी आदतों से बर्बाद न कर सदाचार एवं सद्चरित्र की ओर अग्रसर होना चाहिए। अशोक पुंगलिया ने बताया कि मुनिवृंद यहां से प्रस्थान कर अण्णानगर स्थित मेहता निवास पहुंचेंगे।