कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा पाप का बोझ इतना बढ़ गया है कि शुभ और शुद्ध सपना ही बन गए हैं। अशुभ रोज दुगुना हो रहा है और शुभ घट रहा है। जीवन एक लालटेन की तरह है। आकंाक्षा, अधिकार और अहंकार की बाती बड़ी हो तो उसमें तमो और रजोगुण का धुआं निकलने लगता है और मन का कांच काला होने लगता है।
संगीत अध्यात्म से जुड़ा है। पुराने जमाने में संगीत हृदय को भावविभोर कर देता था। वर्तमान में संगीत विकृत हो गया है।
इस समय सतयुग नहीं कलियुग के समाचार छपते हैं जिनकी बहुलता है। इनमें पापों का फल देखने, सुनने और पढऩे को मिल रहा है। सोचता हूं लोगों की नींद फिर भी नहीं टूटती। सब भौतिकता की तरफ भाग रहे हैं।
धन के पीछे भागने वाला धरती में धंसता है। धर्म के पीछे भागने वाला आकाश में ऊपर उठता है।