चेन्नई. जीवन पानी के बुलबुले के समान क्षणिक जीवन है, शरीर रोगों का घर है, इस शरीर को छोडऩे से पहले इससे कुछ प्राप्त करना है, संसार असार है एवं संयम जैसा सुख नहीं है। यह समझकर मृगापुत्र संयम लेने के लिए तत्पर रहें क्योंकि इस जीव ने नरक गति में भयंकर वेदनाएं सहन की।
तांबरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा संयति राजा मृगापुत्र ने प्रभु की जिन वाणी स्वीकार करके शांति साता-समाधि और सुख प्राप्त किया। जीवन की नश्वरता को समझा, यह शरीर अनित्य है, अपवित्र है, अशुचि पदार्थो से इसकी उत्पति हुई है।
देवगति ने भी बंधनों को सहन किया, अब मनुष्य जीवन में राजमार्ग पर आकर जीवन को सार्थक करना है। जब इंसान के हृदय में से असक्ति का गीलापन हट जाता है तो घर, बंगला और धन्ना जी का महल, जम्बूजी और शालिभद्र का सुख छोडऩे में कोई तकलीफ सहन नहीं करना पड़ता।
साध्वी धर्मलता ने कहा हमारा जीवन सडक़ की तरह निर्लिप्त होनी चाहिए, जहां राजा भी चलता है और रंक भी चलता है, उस पोस्ट बॉक्स की तरह होता है जहां शादी की पत्रिका और शोक की पत्रिका दोनों ही आती है। जिस तरह सडक़ और पोस्ट बॉक्स निर्लिप्त है उसी तरह हमारा जीवन होना चाहिए।