चेन्नई. यहां विरुगमबाक्कम स्थित एमएपी भवन में चातुर्मासार्थ विराजित कपिल मुनि ने मंगलवार को चातुर्मास की शुरुआत पर कहा चातुर्मास आत्म आराधना का सन्देश लेकर आया है । आराधना वही है जो सिद्धि प्राप्त कराये । आराधना करने वाला एक दिन आराध्य बन जाता है। साधना की सिद्धि के लिए द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार बातों की शुद्धि जरूरी है ।
काल की अपेक्षा से जप तप की आराधना के लिए ये चार माह का काल सर्वोत्तम है। चातुर्मास में महापुरुषों की अमृत वाणी का निर्झर निरंतर प्रवाहित होता है ।
जीवन में जितना जरूरी है पानी उतना ही वाणी श्रवण की जीवन में उपयोगिता है । पानी बाहर के ताप का हरण करता है तो वाणी भीतर के आधि-व्याधि-उपाधि के संताप का शोषण करती है। सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें इस चातुर्मास में संत समागम का संयोग प्राप्त हुआ है। इस संसार में बेहद कठिनाई से मिलने वाली चीज हैं संत समागम और धर्म कथा का श्रवण।
इनका संयोग खुश किस्मत वालों को ही मिल पाता है। श्रेष्ठ जीवन वही है जिसमें पवित्रता और निर्मलता है। मनुष्य जीवन का चरम और परम लक्ष्य मृत्यु विजय, अनंत आनंद और शक्ति का द्वारोद्घाटन करना है। इस बेशकीमती जीवन को रोटी, कपड़ा और मकान के जुगाड़ में ही खो देना अज्ञानता के अभिशाप के सिवाय कुछ भी नहीं है।
सही मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाले गुरु ही होते हैं। मुनि ने गुरु पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा जीवन में गुरु के बगैर पूर्णता नहीं आ सकती। गुरु से ही जीवन शुरू होता है। सही मायने में गुरु वही होता है जो गंभीर, उदार और रहस्य का उद्घाटन करने में निपुण हो । ऐसा गुरु ही किसी का कल्याण मित्र होता है।
जो शिष्य के कल्याण में ही आनंद की अनुभूति करता है। इस मौके पर महिला मंडल ने गुरु भक्ति की एक गीतिका प्रस्तुत की। संचालन मंत्री महावीरचंद पगारिया ने किया।