माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के नमस्कार सभागार में ठाणं सूत्र के छठे अध्याय के पिचान्नवें सूत्र का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि शास्त्रकार ने छह ऋतुऐं प्रज्ञप्त की है। एक वर्ष में छह ऋतुऐं, प्रत्येक दो – दो महीने की होती हैं।
काल में परिवर्तन होता रहता है। ऋतुएँं भी परिवर्तित होती रहती है। बारह महीने और छह ऋतुओं का चक्र – प्राकृत ऋतु आषाढ़ और सावन महीना, वर्षा ऋतु भाद्रप्रद और असोज महीना, शरद ऋतु कार्तिक और मिगसर महीना, हेमंत ऋतु पौष और माघ महीना, वसंत ऋतु फाल्गुन और चैत्र महीना एवं ग्रीष्म ऋतु वैशाख और ज्येष्ट महीना।
लौकिक व्याख्या में थोड़ा अन्तर भी है। ऋतु परिवर्तन होता है, तो कभी गर्मी से परेशान, कभी सर्दी से अकान्त, कभी वर्षा से परेशानी, वर्ष भर यह क्रम चलता रहता है। ऋतु का अपना लाभ भी होता है। गर्मी – सर्दी ना पड़े तो परेशानी, वर्षा भी जरूरी होती है। यह सृष्टि की व्यवस्था है। *ऋतु परिवर्तन से भोजन में बदलाव आता है।* दिनचर्या, रहन-सहन पर ध्यान दिया जाता है। एक ही दिन में कितना परिवर्तन हो जाता है, सुबह अलग, दोपहर में सूर्य का तपना, शाम को ठंड और रात्रि में शीतलता। चौबीस घंटों में भी परिवर्तन हो जाता है। बारह महीनों में परिवर्तन यह सृष्टि की व्यवस्था है।
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि आज कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी से जुड़ा दिन है। आज के दिन आचार्य तुलसी ने मुनि नथमलजी को महाप्रज्ञ अलंकरण से अलंकृत किया था। बाद में वह हमारे अनुशास्ता बने। गुरुदेव तुलसी को एक ऐसा शिष्य मिला, जो दार्शनिक और प्रवचन कला में निपुण था। महाप्रज्ञ अलंकरण से कुछ समय पश्चात उन्हें अपना उत्तराधिकारी भी घोषित कर दिया। युवाचार्य पद मिलते ही नाम भी बदलकर युवाचार्य महाप्रज्ञ हो गया। बाद में आचार्य श्री महाप्रज्ञ बन गये। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी में मेघा थी, प्रज्ञा थी।
महाप्रज्ञ वह होता है जिसमें प्रज्ञा महान होती है प्रज्ञा धर्म की समीक्षा करती है। आचार्य महाप्रज्ञ ने जीवन विज्ञान का प्रकटन किया। आज का दिन जीवन विज्ञान दिवस है। जीवन विज्ञान यानी जीने का विज्ञान, जीने की कला। बहतर कलाएँ बताई गई है, व्यक्ति इसमें पारंगत भी हो जाता है, पर जब तक धर्म की कला आत्मसात नहीं करता है, तो और कलाऐं अकिंचितकर हो सकती है। पंडित अपंडित रह जाता है, अगर धर्म की कला न सीखे। वे केवल महिमा मंडित रह जाते हैं। धर्म की कला, जीने की कला, न हो तो और कलाएँ शून्य हैं| जैसे अंक के आगे शुन्य है, तो महत्व है, शून्य के आगे अंक नहीं तो कोई महत्व नहीं होता है।
बुद्धि से खोजा जा सकता, समस्या का समाधान
आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि जीवन विज्ञान जीने की कला सिखाता है। शिक्षा जगत में विविध विद्याएँ सिखाई जाती है। लौकिक विद्या के साथ आध्यात्मिक विद्या सीखने का मौका मिले, तो और विद्याएँ महत्वपूर्ण हो सकती है। जीवन विज्ञान के प्रयोग में एक्सरसाइज के द्वारा विद्यार्थी अच्छा कैसे बन सकता है, यह सिखाया जाता है। उसके लिए शारीरिक और बौद्धिक विकास आवश्यक है, तो मानसिक और भावनात्मक विकास भी आवश्यक है। ये चारों विकास है, तो सर्वागीण या बहुअंगीण विकास हो सकता है।
भावनात्मक विकास अच्छा नहीं, तो ज्ञान कमजोर पड़ जाता है। बौद्धिक विकास के साथ भावनात्मक विकास हो, तो बौद्धिक विकास ज्यादा कारगर बन सकता है। बुद्धि से समस्या का समाधान खोजा जा सकता है।
आचार्य महाप्रज्ञजी में बुद्धि के साथ भावनात्मक विकास भी था। बौद्धिक और भावनात्मक के बल पर प्रतिष्टित स्थान प्राप्त किया और दार्शनिक के रूप में ख्याति प्राप्त की। उनमें संस्कृत भाषा का विकास था। वे संस्कृत के आशु कवि थे। संस्कृत भाषा के साथ अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था। प्रवचन कौशल था, उन्होंने प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान की बात बताई। आज प्रेक्षाध्यान व्यापकता को प्राप्त हो रहा है, तो जीवन विज्ञान शैक्षणिक संस्थाओं में व्यापक हो रहा है। जीवन विज्ञान में एक प्रयोग महाप्राण ध्वनी का कराया जाता है।
पूज्यवर ने कुछ समय के लिए महाप्राण ध्वनी का प्रयोग सभी को कराया। विद्यार्थी जगत आध्यात्मिक प्रयोग करता रहे, तो एक और ज्ञान का विकास, एक और आध्यात्मिक विकास हो सकता हैं| उनमें नैतिकता का भाव रहे। बेईमानी, चोरी जैसे दुष्कृत्य न करें, नशा, शराब, गुटखा आदि से दूर रहे। अहिंसा की चेतना का विकास हो। ऐसे संस्कार विद्यार्थीयों में उभर जाते हैं, विकसित हो जाते हैं, तो उनके लिए कल्याणकारी हो सकते हैं। नहीं तो समस्याभूत बन सकते हैं। समस्याभूत न बन कर समाधानभूत बनें।
जीवन विज्ञान का, विद्या – संस्थाओं में प्रयोग हो तो विद्यार्थी की योग्यता, क्षमता, अर्हता बढ़ाई जा सकती है। शिक्षक पुस्तक ज्ञान के साथ आचार – विचार की भी शिक्षा दें। ऐसे शिक्षण संस्थान, जिनका प्रबंधन अच्छा है, नैतिकता और ज्ञान-दान, संस्कार दान की भावना है, तो वह शिक्षण संस्थान मंदिर होता है, विद्यार्थी पुजारी हो सकते है। उनमें भावनात्मक विकास हो। आज का दिन जीवन विज्ञान दिवस है, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी को याद करते हैं।
“साध्वी प्रमुखा का यात्रा प्रवास” ग्रन्थ का हुआ विमोचन
सुबह से ही वर्षा की रिमझिम के साथ पुज्यवर का प्रवचन आवास स्थल पर ही हुआ। डॉक्टर श्रीमती ज्योति मुथा, श्रीमती एकता चोरडिया एवं श्री रेख धोका व श्रेयांस भरसरिया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। प्रवास व्यवस्था समिति से पुलिस सुरक्षा समिति के संयोजक श्री मूलचंद जी कोठारी, पंडाल व्यवस्थापक श्री राजेन्द्र भंडारी ने अपने भाव प्रस्तुत किये। नम्रता सेठिया, व्यवस्था समिति उपाध्यक्ष श्री प्रकाशचंद मुथा, श्रीमती उषा बोहरा व माही बोहरा ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल द्वारा चेन्नई एक्सप्रेस की सुंदर प्रस्तुति दी गई। समणी नियोजिका मल्लिप्रज्ञा ने चेन्नई तेरापंथ महिला मंडल की सेवाओं का उल्लेख किया।
श्रेयांश भरसारिया जिसने पहले मासखमण तप किया था, आज उसने ग्यारह के तप का पचक्खाण किया। “साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा का यात्रा प्रवास” नामक ग्रंथ, जो डॉक्टर धर्मनारायण भारद्वाज द्वारा लिखित है, का विमोचन पुज्यवर की सन्निध्यी में श्री सवाईलाल पोकरणा (उदयपुर), प्यारेलालजी पितलिया ने किया। श्री सवाईलाल पोखरणा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
श्री प्रकाश सुतरिया को भीलवाड़ा चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष पद के लिए सुनाया मंगलपाठ
परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आगामी सन् 2021 के भीलवाड़ा चातुर्मास के लिए श्री प्रकाश जी सुतरिया (अड़सीपुरा-भीलवाड़ा) को आचार्यश्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, भीलवाड़ा के अध्यक्ष पद के रूप में मंगलपाठ सुनाया|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई
स्वरूप चन्द दाँती
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति