🛕 *स्थल: श्री राजेन्द्र भवन चेन्नई*
🪷 विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, दीक्षा दाणेश्वरी श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री डॉ. वैभवरत्नविजयजी म.सा. के प्रवचन के अंश
🪔 *विषय : परम सत्वशाली ज्ञान और चारित्रधर्म*🪔
~ प्रभु के भक्त की भक्ति धारा इतनी श्रेष्ठ और अखंड होती है कि परमात्मा के मिलन की महक हर पल होती ही है।
~ धर्म क्रिया करने के बाद भी यदि जीव आर्त और रौद्र ध्यान में लीन रहता है या आसक्त रहता है तो वह जीव मारकर निश्चित रूप से तिर्यंच या नरक में जाता है।
~ जब संसार के राग द्वेष के भावों का अंत होता है तभी धर्मध्यान प्रारंभ होता है।
~ हमारे लिए महान परमात्मा है लेकिन परमात्मा के लिए महान धर्मतीर्थ है और धर्मतीर्थ की प्राप्ति धर्मध्यान से ही होती है।
~ ज्ञान यदि सम्यक्, संकल्प, स्थिरता वाला है तो चंचलता का नाश होता ही है।
~ अरिहंत प्रभु की energy अनंत है भक्त उसे हर पल महसूस करके स्वयं की अनंत शक्तियों को भी प्रकट करता ही है।
~ इस पृथ्वी पर परम पुण्यशाली, सभी पापों का मूलभूत क्षय करने वाले, विश्व के सभी जीवो को सुरक्षा देने वाले श्रेष्ठ भगवंत कोई है तो वह है अरिहंत प्रभु।
~ प्रभु का व्यक्तित्व सर्व सुख का मूल है और प्रभु का अस्तित्व सभी जीवो के मोक्षसुख का मूल है।
~ प्रभु महावीर स्वामी ने दीक्षा के प्रथम दिन से ही भेद ज्ञान की साधना परम पराकाष्ठा से की थी जिसके बल से 12 1/2साल बाद केवल ज्ञान प्रकट होता ही है।
~ सर्वजीव के लिए स्नेह भाव, क्षमा भाव, प्रायश्चित, सहायता, करुणा सभी गुणों से जुड़ना यानी केवलज्ञानी प्रभु और स्वयं के केवलज्ञान के साथ ही जुड़ना।
*”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*
🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪