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जन्म-मरण की श्रृंखला तोड़ने में सहायक जप : मुनि अर्हत कुमार

जन्म-मरण की श्रृंखला तोड़ने में सहायक जप : मुनि अर्हत कुमार

नवकार मंत्र जप अनुष्ठान एवं ग्रह शांति मंत्र रंग चिकित्सा का हुआ आयोजन

तेरापंथ महिला मंडल एवं युवक परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में

गांधीनगर, बंगलूरु ; महातपस्वी युगप्रधान आचार्य महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि अर्हत् कुमारजी के सान्निध्य में नवकार मंत्र जप अनुष्ठान एवं ग्रह शांति मंत्र रंग चिकित्सा का तेरापंथ सभा भवन में, तेरापंथ महिला मंडल एवं युवक परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में आयोजन किया गया।

 साधकों को सम्बोधित करते हुए मुनि अर्हतकुमारजी ने कहा कि विविध शक्तियों का खजाना है मंत्र। मनोयोग पूर्वक जप करने से वे सारी शक्तियां धीरे-धीरे प्रकट होने लगती है। एक ही शब्द को पुनः पुनः उच्चारण करना ही जप कहलाता है। जप में दो अक्षर है “ज” का अर्थ है जन्म का विच्छेद करने वाला और “प” का अर्थ है पापों का विनाश करने वाला, अर्थात जो जन्म-मरण की श्रृंखला को तोड़ने वाला व पापों का विनाश करने वाला होता है, वह जप कहलाता है। जप विघ्न विनाशक, शांति प्रदायक, व्याधि विनाशक भी होता है।

कलयुग में जप को ही आधार माना गया है, क्योंकि तप हर व्यक्ति कर नहीं सकता। ध्यान एकाग्रता के बिना हो नहीं सकता। किंतु प्रभु का नाम तो हर समय लिया जा सकता है। फिर भी आज का मानव सुगम-सुलभ कार्य के लिए भी तैयार नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रातः उठते ही अपने-अपने इष्ट का स्मरण अवश्य करना चाहिए, क्योंकि थोड़ी देर का शुद्ध स्मरण भी अनेक बार बहुत बड़ी बाधाओ से बचा सकता है। विधि सहित किया गया जप का अपना अलग ही महत्व होता है। जप अनुष्ठान में आसन सिद्धि, उत्तराभिमुख, पुर्वाभिमुख, एकाग्रता उच्चारण शुद्धि का अपना महत्व होता है। जप को गुरु के पास से लेना चाहिए।

जप अनुष्ठान के समय खाद्य पदार्थ का संयम व ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सुगंधित पदार्थ व तामसिक पदार्थों का वर्जन करना चाहिए। एक बार सवा लाख जप करके इस मंत्र को सिद्ध करना चाहिए। जिस मंत्र का जप करें, उस पर पूर्ण श्रद्धा रखनी चाहिए। श्रद्धा से किया गया जाप ही सार्थक व सुफल देने वाला होता है। जप कर्म निर्जरा की दृष्टि से करने वाला व्यक्ति ही आत्मराधना कर सकता है। नमस्कार महामंत्र विशिष्ट शक्तिशाली मंत्र है, यदि उच्चारण शुद्धि से श्रद्धा पूर्वक जप करें तो व्यक्ति अचित्य फल मोक्ष को भी प्राप्त कर सकता है। मानसिक जाप निरंतर चले तो वह एक प्रकार से कवच का काम करता है।

मुनि श्री ने आगे कहा कि आत्मरक्षा एवं विद्या रक्षा के लिए मंत्र का अनुष्ठान अनिवार्य है। मंत्रों से सुरक्षा कवच बनता है। मंत्र आधी-व्याधि-उपाधि से मुक्ति प्रदान कर समाधि प्रदान करते हैं। जैन धर्म में नमस्कार महामंत्र का बहुत बड़ा महत्व है। भगवान महावीर की वाणी में मंत्र अनुष्ठान को यज्ञ की उपमा दी गई है।

मुनि भरतकुमारजी ने कहा कि मंत्र जाप से भव भव का संताप कट जाते हैं, पाप मिट जाते है, क्योंकि मंत्र की शक्ति है अमाप। मुनि श्री जयदीपकुमारजी कार्यक्रम में उपस्थित थे।

कार्यक्रम में जैन संस्कारक जितेन्द्र घोषल, विक्रम दुगड़, अरविंद बैद ने मंत्रोच्चारण किया एवं दिनेश चोपड़ा, राजेन्द्र बैद ने सहयोग किया। इस अवसर पर तेयुप अध्यक्ष प्रदीपजी चोपड़ा उपस्थित रहे। महिला मंडल अध्यक्षा जैन स्वर्णमाला पोकरणा ने सभी सहभागीयों के प्रति आभार एवं चरित्र आत्माओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।

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