चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने ‘ठाणं’ आगमाधारित में कहा आगम में वर्णित बारह देवलोकों में पांचवें और छठे देवलोक के देव आंखों से देखकर ही अपनी कामेच्छा पूरी कर लेते हैं। उनकी साधना ऐसी होती है कि वे आंखों से ही परिचारणा कर लेते हैं।
आदमी आंखों से बहुत कुछ देखता है। यदि अपने किसी मित्र, पुत्र व सगे संबंधी को देखता है तो उसके मन में राग के भाव उत्पन्न होते हैं। किसी विरोधी अथवा अनचाही चीज को देखकर उसमें गुस्से का भाव भी आ जाता है जबकि अपने गुरु अथवा पूजनीय की तस्वीर देखने पर श्रद्धा भाव आ जाते हैं। आदमी को देखने का कौनसा भाव जाग्रत होता है यह खास बात होती है। किसी को देखने से करुणा भाव तो किसी को देखने से गुस्से का भाव भी आ जाता है। ऐसा प्रयास करना चाहिए कि आदमी को देखने से करुणा, अहिंसा का पवित्र भाव टपके।
आचार्य ने कहा इस तरह चित्र से चरित्र का निर्माण हो सकता है। साधुओं को ऐसी चीजें देखने से बचना चाहिए, जिससे काम के भाव आ जाएं। आंखें ध्यान, स्वाध्याय साधना का साधन बनें तो उनका सदुपयोग हो सकता है। इसलिए व्यक्ति को अपनी आंखों से देखने में भी विवेक रखकर उनका सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने पत्रिका समूह के संपादक गुलाब कोठारी को आशीर्वाद देते हुए कहा आपके पास जो पत्रिका के रूप में शस्त्र प्राप्त है, उससे नैतिकता व प्रामाणिकता को स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए। इस मौके पर महासभा पंचमंडल के सदस्य अमरचन्द लूंकड़ ने कोयम्बत्तूर में होने वाले आगामी मर्यादा महोत्सव पर स्व. मोहनभाई जैनव स्व. विशनदयाल गोयल (हांसी-कोलकाता) को तेरापंथ समाज के सर्वोच्च अलंकरण ‘समाज भूषण’ से सम्मानित किए जाने की घोषणा की। बाद कोठारी ने आचार्य के साथ धर्म चर्चा भी की। इस मौके पर महाश्रमण से वीसीके नेता तिरुमावलम ने मुलाकात की।