चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय, भुवनरत्न विजय चातुर्मास समापन के बाद चातुर्मास स्थान परिवर्तन के लिए भगवानमल शंकर कोठारी के निवास पर पहुंचे। इसके पूर्व राजेन्द्र भवन में भक्तामर पाठ के पश्चात् श्री सिद्धाचल तीर्थ की भाव-यात्रा मुनि ने करवाई। मुनि ने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही द्रविड़ और वारिखिल्ल 10 करोड़ मुनियों के साथ सिद्धाचल तीर्थ पर मोक्ष गए थे। घट सरस्वती पुत्र हेमचंद्राचार्य का जन्म भी 12वीं सदी की कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही हुआ था।
जो सीधा चलता है, वह सिद्ध स्थान स्वरूप सिद्धशिला को प्राप्त कर लेता है। सिद्धाचल तीर्थ हमें सीधा चलने, सीधा बनने, सीधा रहने व सीधा कहने की प्रेरणा देता है। इस तीर्थ का दूसरा नाम शत्रुंजय भी है,जो हमें राग-द्वेष रूपी आत्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का संदेश देता है। जिसका मोह क्षय हो गया है वही मोक्ष का अधिकारी बनता है। चिंता हमारी प्रसन्नता में तो इच्छाएं हमारे मोक्ष मार्ग में बाधक हंै।
हमारी इच्छाओं का घटना ही मोक्ष मार्ग की ओर बढऩे की निशानी है। मोक्ष की इच्छा रखने की अपेक्षा इच्छाओं को ही समाप्त कर देना चाहिए। मोक्ष स्वत: ही प्राप्त हो जाएगा। चिंता तो चिता से भी ज्यादा खतरनाक होती है। चिता तो मरने के बाद जलाती है, लेकिन चिंता से व्यक्ति जीते जी जलता रहता है। हमारी प्रसन्नता का दूसरा बाधक तत्व ईष्या व तीसरा बाधक तत्व क्रोध है। दो सुखी दिल को दुखी करने का कार्य ईष्या करती है और गलत निर्णय लेने हेतु क्रोध हमें प्रेरित करता रहता है। शनिवार को मुनिवृंद लुम्बिनी अपार्टमेंट पहुंचेंगे।