माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में दादा दादी “चित्त समाधि शिविर” के संभागीयों को समाधि प्रदाता आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आदमी पहले बच्चा होता हैं, कभी वह पड़पोता था, कभी पोता था, कभी पिता बनता हैं और आज वह दादा बन गया| दादा यानि जीवन का लगभग आधा समय चला गया| दादा के नीचे दो सीढ़ियां हैं, पुत्र और पौत्र|
दादा तभी, जब पोता हैं
आचार्य श्री ने आगे कहा कि दादा तीन पीढ़ियों का मालिक हैं, जैसे तीन मंजिला मकान| दादा पोते की जोड़ी होती हैं| कभी-कभी पोते की बात दादा मान लेता हैं, पर दादा तभी है, जब पोता हैं|
आचार्य श्री ने आगे कहा कि दादा पोते की ओर ध्यान दे, कि उसमें कैसे सद् संस्कारों का बीजारोपण हो? यह भी ध्यान दे कि 70 के बाद चित्त समाधि कैसे रहे? 80-85 की उम्र में तो मन में शांति रहे| परिवार के लोग भी ध्यान रखे कि अगर वे असमाधि हैं, तो भी उन्हें सहन करे, उनकी बातों को सहज में ले, नकारात्मक सोच न हो|
संसार में दादा होते हैं पूज्यनीय
आचार्य श्री ने आगे कहा कि बुजुर्ग ध्यान दे कि अब बेटा-पोता जाने, मैं उनके किसी काम में हस्तक्षेप न करूं| उनको निर्देश दे सकते हैं, माने या न माने, वे जाने, ताकि मन में राग द्वेष न आयें| मन धर्म, ध्यान में लगा रहे| संयम, शांति, स्वाध्याय, सामायिक का विशेष ध्यान रखे| संसार में दादा पूज्यनीय होता, पर पड़दादा होना और बड़ी बात हैं| परिवार में चित्त समाधि रखते हुए अनासक्त भाव से रहें|
छ: चीजें है दुर्लभ
ठाणं सूत्र के छठे स्थान के तेरहवें श्लोक का विवेचन करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि शास्त्रकारों ने छ: चीजें सर्व जीवों के लिए दुर्लभ बताई है, सुलभ नहीं हैं| वे हैं – मनुष्य भव का मिलना, उसके बाद आर्य क्षेत्र में जन्म लेना, श्रेष्ठ कुल में जन्म लेना, केवली प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण करना, जो धर्म सुना है उस पर श्रद्धा होना एवं धर्म का आचरण करना|
चिंतामणि रत्न के समान दुर्लभ है मनुष्य भव
आचार्य श्री ने पावन प्रेरणा देते हुए कहा कि मनुष्य जन्म एक बार मिला, धर्म का मार्ग मिला, उसे पाकर जो खो देता है, वो अभागा है| जैसे कोई व्यक्ति अपने घर में कल्प-वृक्ष को उखाड़ कर धत्तूरे का पेड़ लगाता है| हाथ में आये हुए चिंतामणि रत्न को काग उड़ाने में फैंक देता है|
आचार्य श्री ने कथानक के माध्यम से धर्मसभा को बोधि देते हुए कहा कि जैसे चक्रवर्ती की खीर दुबारा मिलनी दुर्लभ हैं, वैसे ही मनुष्य जन्म का मिलना असुलभ हैं| इसका पुरा लाभ उठायें| धर्म का आचरण करते हुए अपने जीवन को सफल बनायें|
आचार्य श्री ने सुश्रावक डालमचन्द मालू द्वारा लिखित “तत्व ज्ञान भाग 1” के लोकार्पण पर मंगल आशीर्वचन फरमाते हुए कहा कि आप अच्छे तत्व ज्ञानी श्रावक हैं, साधुओं को भी स्वाध्याय कराते हैं| केन्द्र में अच्छी सेवा-उपासना का लाभ लेते हैं| 96 वर्ष के है, इनका त्याग, प्रत्याख्यान और ज्ञान आगे से आगे बढ़ता रहे|
गुरू होते हैं कामधेनु : साध्वी प्रमुखाश्री
साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभा ने कहा कि बाहर का सूर्य बाहरी अंधकार को दूर करता है, पर गुरू ऐसे सूर्य है, जो आत्मा का अंधकार दूर करने वाले होते हैं, कामधेनु हैं|
मुनि श्री सुधाकर ने चित्त समाधि शिविर के संभागीयों को संबोधित करते हुए कहा कि 21 वर्ष की उम्र में शादी की तैयारी करते हैं, 70 वर्ष की उम्र में साधना की तैयारी करें| मोहावस्था से दूर होकर अनासक्ति की साधना करें|
चित्त समाधि शिविर के संयोजक श्री इन्द्रचन्द डुंगरवाल ने कहा कि दादा दादी सदियों से घर की शान रहे हैं| तपस्वीयों ने आचार्य प्रवर के श्रीमुख से तपस्या का प्रत्याख्यान किया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
जैन विद्या पारितोषिक सम्मान
समण संस्कृति संकाय -जैन विश्व भारती द्वारा आयोजित एवं तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा संचालित जैन विद्या परीक्षा के सत्र 2017-18 के वरीयता प्राप्त परीक्षार्थीयोंको आचार्य प्रवर के सान्निध्य में पुरस्कृत किया गया।
सभी वरीयता संभागी को केंद्र द्वारा प्राप्त प्रमाण पत्र एवं परिषद् द्वारा सम्मानित किया गया| कार्यक्रम में समण संस्कृति संकाय जैन विद्या परीक्षा के संयोजक श्री महेंद्र सेठिया, तेयुप अध्यक्ष श्री भरत मरलेचा, संकाय के अन्य स्थानीय पदाधिकारी उपस्थित थे। संचालन मंत्री श्री मुकेश नवलखा ने किया| शिक्षा प्रभारी श्री दीपक कातरेला एवं साथीयों का कार्यक्रम में अथक परिश्रम लगा|
*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
स्वरूप चन्द दाँती
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति
विभागाध्यक्ष : प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति