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ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता: वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत रस की सरिता बह रही है, जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा में संबोधित करते हुए कहा कि आर्य सुधर्मा स्वामी जंबू स्वामी को वीर प्रभु की गुण गाथा गा रहे हैं जिसे हम वीर स्तुति कहते हैं 21वीं गाथा में कह रहे हैं कि – जिस प्रकार हाथीयों में इंद्र महाराज का ऐरावत हाथी को सर्वश्रेष्ठ कहा है क्योंकि यह हाथी स्वेत रंग वाला और सुंदर होता है सफेद यानी कि चांदी सिल्वर की तरह होता है कहते हैं सफेद हाथी के मस्तक में सवामण मोती होते हैं जिसे गजमुक्ता कहते हैं और ऐसा क्षेष्ठ हाथी जहां रहता है वहां लक्ष्मी जी का निवास होता है यानी कि धन्य धान्य की अभिवृद्धि होती है जिस समय भगवान महावीर स्वामी माता के गर्भ में आये थे तब माता ने चौदह स्वप्न देखे थे

उनमें सबसे पहले हाथी को देखा था तब राजा सिद्धार्थ के घर में राज्य मे हर जगह पर वृद्धि होने लगी थी इसलिये राजा सिद्धार्थ ने वर्धमान कुमार नाम रखा था – इसलिये यहां पर भगवान को ऐरावत हाथी की उपमा दी गई है भगवान का जीवन एरावत हाथी की तरह श्रेष्ठ था , भगवान शेर के समान निर्भिक थे घाती कर्मों को नष्ट करने के पश्चात प्रभु गंगा के पानी की तरह निर्मल शुद्ध पवित्र थे प्रभु गरुड की तरह अप्रतिबंध बिहारी थे जैसे गरुड खुले आसमान में गगन विहार करता है

उसी प्रकार भगवान भी इस धरती को पावन करते हुवे विचरण करते थे , इस प्रकार अनेक श्रेष्ठ गुणों से भगवान सुशोभित थे भगवान ने संसार के जीवो पर करुणा करके मोक्ष का यथार्थ स्वरूप और उसे प्राप्त करने का मार्ग बताया इसलिये उन्हें समस्त मोक्ष वादियों में प्रमुख मेन कहा गया है

22 वीं गाथा में आर्य सुधर्मा स्वामी फरमाते हैं कि जैसे युद्ध कला में शुरवीर बहुत से हाथी घोड़े रथ और पैदल चतुरंगणी सेना के अधिपति अर्धचक्रि वासुदेव प्रधान है कहा भी है युधे शूरा वासुदेवा होते हैं फूलों में हजार पंखुरीयों वाला अरविंद नामक कमल का फूल सर्वश्रेष्ठ है और चक्रवर्ती तो महान दीप्ति महान राजा कहलाते है , जिनके वचन मात्र से ही शत्रु भी शांत हो जाते हैं

ये क्षत्रियों में प्रधान कहलाते हैं वैसे ही सर्व सुंदर उपमाओ अलंकार जिन पर सजाते है ऐसे परम पवित्र चरम तीर्थंकर वीर वर्धमान महावीर स्वामी सभी ऋषि-मुनियों में सर्वश्रेष्ठ थे , भगवान भी कर्म शत्रुओ को नष्ट करने में महान योद्धा थे परंतु उनका हृदय संसार के जीवों के लिये कमल के फूल , मक्खन की तरह कोमल नरम था तथा चक्रवर्ती की तरह अजेय थे यह कभी न हारने वाले थे

संसार में तीर्थंकर के समान अन्य कोई भी शक्तिशाली बलशाली नहीं था भगवान महावीर स्वामी के साधना काल में कितने उपसर्ग व परिषह आये परंतु भगवान कभी भी डिगने वाला नहीं थे जो भी कष्ट मनुष्य देव व तिर्यन्चों के द्वारा आये सभी को धैर्यता व समता शांति के साथ सहन किया था

आज कार्तिक सुदी 13 है गुरुदेव जैन दिवाकर श्री चौथमल जी म सा की जन्म तिथि है वैसे हमने 18 तारीख को त्रिदिवसिय कार्यक्रम के रूप में मनाई थी – 16 तारिक को सामूहिक एकासना 150 हुवे व 17 तारिक को सजोडे जाप जैन दिवाकर चालीसा व नवकार मंत्र का अच्छे से हुआ 18 तारिक को जन्म जयंती गुरुदेव की व कर्नाटक गजकेशरी घोर तपस्वी श्री गणेशी लाल जी म सा तथा आचार्य श्री हीराचंदजी म सा की दीक्षा जयंती मनाई गई चांदी के सिक्के की प्रभावना दी गई गौतम प्रसादी व अन्नदानं का कार्यक्रम रखा गया था जिसमे 1500 के करीब अनाथ आश्रम से बसों के द्वारा लाये गये

आराधना भवन में पहली बार ऐसा अभूतपूर्व द्दस्य देखने को मिला , दादा गुरुदेव श्री चौथमल जी म सा के लिये मेरे गुरुदेव श्री विमलमुनिजी म सा फरमाते थे – बाहुबली हनुमंत और भीम चौथमल का यशनिसिन अर्थात पहले युग में शक्तिशाली बाहुबली थे चक्रवर्ती सम्राट भरत से भी ज्यादा बल था – क्यों – क्योंकि उन्होंने पूर्व भव में 500 मुनिराजो की अग्लान भाव से सेवा की थी बीमार वृद्ध साधुओं की सेवा करके अनंत शक्ति पुंज शक्ति व पुण्य बांधा था दूसरे युग में हनुमान जी हुवे

जो बालक अवस्था में विमान से नीचे गिरे जिस पहाड़ पर गिरे उस पहाड़ का तो पाउडर हो गया था ऐसे बलवान थे हनुमान जी तीसरे युग में भीम हुवे पांडवों में जो बहुत ही बलशाली थे इस चौथे युग में चौथमलजी यानी चौथा + मल पहलवान थे धर्म के पहलवान थे राजा महाराजा को झुका दिया था भगवान महावीर स्वामी के अहिंसा धर्म का घर घर प्रचार प्रसार किया इसलिये कहते हैं यथा नाम तथा गुण आर्य सुधर्मा स्वामी 23 वी गाथा में कहते हैं कि है जम्बू जैसे सभी दान में अभय दान सर्वश्रेष्ठ दान है सत्य वचन में श्रेष्ठ अनवद्य यानी कि पाप रहित वचन बोलना बोलने के पहले तोलना उसी प्रकार सभी तपस्या में ब्रह्मचर्य तप सर्वश्रेष्ठ है इसी प्रकार समस्त संसार में ज्ञात पुत्र श्रमण भगवान महावीर स्वामी थे

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