Share This Post

ज्ञान वाणी

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा : वीरेन्द्र मुनि

चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा : वीरेन्द्र मुनि

कोयम्बत्तूर आर एस पुरम स्थित आराधना भवन में चातुर्मासिक प्रवचन की अमृत धारा जैन दिवाकर दरबार में विमलशिष्य वीरेन्द्र मुनि नें धर्म सभा को संबोधित करते हुवे कहा कि प्रभु महावीर स्वामी 12 व्रतों का वर्णन फरमा रहे हैं। जिसमें आज ग्यारहवां प्रति पूर्ण पोषध करने का आह्वान किया है। पोषध याने आत्मा के समीप रहना आत्मा का पोषण करना हम अपने शरीर की इंद्रियों को पोषण चौबीसों घंटे करते हैं।

पर कभी – कभी शरीर की ममता को छोड़कर आत्मा को पोषण करें हम भगवान महावीर के श्रावक हैं। जैन है, धर्मी है, तो हमारा कर्तव्य बनता है कि हम वर्ष भर में कम से कम एक पोषध अवश्य करें पोषध करने के लिये हमें कुछ नियमों का पालन करना होगा। पोषध के निमित से स्नान इतर सेंट माला अलंकार गहने आभूषण आदि का त्याग करना होगा। ब्रम्हचर्य का मन वचन काया से पालन करना होगा।

पोषध करने के निमित्त खांडना पीटना कूटना इत्यादि सवद्यक्रिया का त्याग करना। प्रति पूर्ण पोषध में चारों आहार का 24 घंटे का त्याग करना होता है। सांसारिक व्यापार आदि की क्रियाएं छोड़नी पड़ेगी। अनंत काल से हर जन्म में इस शरीर को अच्छे से अच्छा खिलाया पिलाया है। कोई हमें बोल दे कि पतले हो गये तो जल्दी से बादाम गूंदगिरी का लडू उड़द के लडू फलोदी बादाम का हलवा खजूर खारका इत्यादि बावन प्रकार का मेवा है।

प्रयोग करने के लिये तैयार रहते है डॉक्टर से भी कैल्शियम का इंजेक्शन ग्लूकोश व विटामिन की दवाइयों का डॉक्टर की सलाह अनुसार प्रयोग करने लग जाएंगे परंतु हमारी आत्मा कितनी निर्मल निःसहाय बन गई हैं। इसको बलवान बनाने के लिये एक मात्र पोषध ही विटामिन है इस पोषध से आत्मा शक्तिमान बन सकती है।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar