हावड़ा. भगवान अपने भक्तों को सुख देने के लिए अवतार लेते हैं. अवतार में विभिन्न लीलाओं के माध्यम से संदेश देते हैं कि हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में भी घबराना नहीं चाहिए. अपितु प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल बनाने की कोशिश करनी चाहिए. भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं.
इसीलिए वह मर्यादा का पालन हर समय करते हुए दिखायी देते हैं. पिता दशरथ के वचन की रक्षा हो, इसलिए वे सहर्ष वन गमन के लिए तैयार हो जाते हैं. इसकी सूचना वह सीता को देते हैं और कहते हैं कि तुम यहां रह कर माताओं की सेवा करना. इसे सुनकर सीताजी व्याकुल हो बोलीं कि ऐसा न कहें. तब भगवान राम ने वनवास के कठिन जीवन यात्राओं के बारे में बताया तब सीताजी बोलीं, जब आप साथ हों तो मुझे किसी चीज का भय और अभाव नहीं होगा. आपका साथ मेरी सभी प्रतिकूलताओं को अनुकूलताओं में बदल देगा, यदि आप मुझे
14 वर्षों तक अयोध्या में रहने के लिए कहेंगे तो मैं इतने अवधि तक अवध में जिंदा नहीं रहूंगी. आप मेरे प्राण हैं, क्या कोई प्राण के बिना जीवन की कल्पना कर सकता है. जब वनवास में आप थकेंगे तो मैं आपकी सेवा करूंगी. आपका मुख दर्शन ही मेरे समस्त दुखों का नाश कर देगा. राम के हां कहने पर सीताजी, मां कौशल्या का पांव दबाते हुए संकोच में पड़ गयीं कि मैं किस तरह मां से आदेश लूं.
मुझे जाने देंगी या नहीं, लेकिन सीता की मनोदशा को देख कर कौशल्या ने अनुमति दी तथा कई तरह की शिक्षा भी दी. इससे हमको यह संदेश मिलता है कि हम घर से कहीं जायें तो बड़ों से अनुमति व आशीर्वाद लेकर निकलें.
ये बातें हावड़ा सत्संग समिति की तत्वावधान में रामचरित मानस पाठ का परायण करते हुए सिंहस्थल पीठाधीश्वर क्षमाराम महाराज ने हावड़ा हाउस सभागार में कहीं. इस अवसर पर संत रामपाल, मनमोहन मल्ल, पुरुषोत्तम पचेरिया, पवन पचेरिया, हरिभगवान तापड़िया, इंद्र कुमार मल्ल, श्रीकिशन मल्ल, महावीर प्रसाद रावत सहित अन्य गणमान्य लोगों ने मानस पाठ किया.