-धर्मसभा में उन्होंने बताया कि जिनकी देव, गुरू और धर्म के प्रति श्रद्धा होती है वे नहीं करते धर्मान्तरण । जिनकी भी देव, गुरू और धर्म के प्रति अगाध श्रृद्धा होती है वे विचलित नहीं होते है तथा कभी भी अपना धर्म नहीं बदलते हैं। सिख धर्म के दसवे गुरू गोविन्द सिंह जी के मासूम पुत्रों ने दीवार में चिनना स्वीकार किया लेकिन अपना धर्म परिवर्तर्न नहीं किया। धर्मर् परिवर्तित कर वह अपनी जान बचा सकते थे, लेकिन उनकी देव गुरू और धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्था नहीं डगमगाई।
उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी रमणीक कुंवर जी की सुशिष्या साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने स्थानीय पोषद भवन में आयोजित एक धर्म सभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में साध्वी जयश्री ने बताया कि संसार में रहकर भी श्रावक धर्म के 12 व्रतों का पालन कर आप एक तरह से साधु जीवन जी सकते है। साध्वी वंदना श्री जी ने धर्मसभा में सुमधुर स्वर में भजन का गायन किया कि तीन वार भोजन, भजन एक बार उसमें भी आते हैं झंझट हजार।
धर्मसभा में साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने सभा में उपस्थित श्रोताओं से सवाल किया कि देवगुरू और धर्म के प्रति आपके मनमें विश्वास है या आस्था और श्रद्धा।
उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग देव गुरू और धर्म के प्रति विश्वास रखते है, लेकिन विश्वास कभी स्थायी नहीं होता। विश्वास टूटता है और विश्वास का घात भी उस समय होता है जब देव गुरू धर्म के प्रति विश्वास होने के बाद भी आपकी मनोकामना पूर्ण नहीं होती है। उन्होंने कहा कि मनोकामना हेतु देव गुरू धर्म पर विश्वास करना उचित नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि आपका मतलब पूरा नहंी हुआ तो आपने ईष्ट, गुरू और धर्म को बदल दिया। कपड़ों की भांति धर्म बदलने में ऐसे लोगों को देर नहीं लगती। कोई दु:खद प्रसंग आया तो धर्म बदल दिया।
उन्होंने बताया कि देव, गुरू और धर्म से अपने मतलब से जुड़ना उचित नहीं है। मन के अंदर श्रद्धा से जगाईये। उन्होंने शास्त्र का उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार साधुत्व से पतित हुए तो सिद्धी संभव है। लेकिन श्रद्धा से पतित हुए तो सिद्धी प्राप्त नहीं की जा सकती। उन्होंने बताया कि जब भी हम संकट में होते हैं तो हमें अपने माता-पिता और भगवान याद आते हैं। माता-पिता और भगवान के प्रति ऐसी भक्ति होना चाहिए कि मौत भी आए तो वह स्वीकार है।